होलाष्टक,,,,, प्रारम्भ 21 मार्च 2021 से...
चन्द्र मास के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका पर्व मनाया जाता है. #होली #पर्व के #आने_की_सूचना होलाष्टक से प्राप्त होती है. होलाष्टक को होली पर्व की सूचना लेकर आने वाला एक हरकारा कहा जात सकता है. "होलाष्टक" के शाब्दिक अर्थ पर जायें, तो होला+ अष्टक अर्थात होली से पूर्व के आठ दिन, जो दिन होता है, वह होलाष्टक कहलाता है. सामान्य रुप से देखा जाये तो होली एक दिन का पर्व न होकर पूरे नौ दिनों का त्यौहार है. दुलैण्डी के दिन रंग और गुलाल के साथ इस पर्व का समापन होता है।
होली की शुरुआत होली पर्व होलाष्टक से प्रारम्भ होकर दुलैण्डी तक रहती है. इसके कारण प्रकृ्ति में खुशी और उत्सव का माहौल रहता है। 21 मार्च से 28 मार्च, 2021 के मध्य की अवधि होलाष्टक पर्व की रहेगी. होलाष्टक से होली के आने की दस्तक मिलती है, साथ ही इस दिन से होली उत्सव के साथ-साथ होलिका दहन की तैयारियां भी शुरु हो जाती है।
👉 होलिका दहन में होलाष्टक की विशेषता
होलिका पूजन करने के लिये होली से आंठ दिन पहले होलिका दहन वाले स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर उसमें सूखे उपले, सूखी लकडी, सूखी खास व होली का डंडा स्थापित कर दिया जाता है. जिस दिन यह कार्य किया जाता है, उस दिन को होलाष्टक प्रारम्भ का दिन भी कहा जाता है. जिस गांव, क्षेत्र या मौहल्ले के चौराहे पर पर यह होली का डंडा स्थापित किया जाता है. होली का डंडा स्थापित होने के बाद संबन्धित क्षेत्र में होलिका दहन होने तक कोई शुभ कार्य संपन्न नहीं किया जाता है।
👉 होलाष्टक के दिन से शुरु होने वाले कार्य
सबसे पहले इस दिन, होलाष्टक शुरु होने वाले दिन होलिका दहन स्थान का चुनाव किया जाता है. इस दिन इस स्थान को गंगा जल से शुद्ध कर, इस स्थान पर होलिका दहन के लिये लकडियां एकत्र करने का कार्य किया जाता है. इस दिन जगह-जगह जाकर सूखी लकडियां विशेष कर ऎसी लकडियां जो सूखने के कारण स्वयं ही पेडों से टूट्कर गिर गई हों, उन्हें एकत्र कर चौराहे पर एकत्र कर लिया जाता है.
होलाष्टक से लेकर होलिका दहन के दिन तक प्रतिदिन इसमें कुछ लकडियां डाली जाती है. इस प्रकार होलिका दहन के दिन तक यह लकडियों का बडा ढेर बन जाता है. व इस दिन से होली के रंग फिजाओं में बिखरने लगते है. अर्थात होली की शुरुआत हो जाती है. बच्चे और बडे इस दिन से हल्की फुलकी होली खेलनी प्रारम्भ कर देते है।
👉 होलाष्टक में कार्य निषेध
होलाष्टक मुख्य रुप से पंजाब और उत्तरी भारत में मनाया जाता है. होलाष्टक के दिन से एक ओर जहां उपरोक्त कार्यो का प्रारम्भ होता है. वहीं कुछ कार्य ऎसे भी है जिन्हें इस दिन से नहीं किया जाता है. यह निषेध अवधि होलाष्टक के दिन से लेकर होलिका दहन के दिन तक रहती है. अपने नाम के अनुसार होलाष्टक होली के ठिक आठ दिन पूर्व शुरु हो जाते है।
होलाष्टक के मध्य दिनों में 16 संस्कारों में से किसी भी संस्कार को नहीं किया जाता है. यहां तक की अंतिम संस्कार करने से पूर्व भी शान्ति कार्य किये जाते है. इन दिनों में 16 संस्कारों पर रोक होने का कारण इस अवधि को शुभ नहीं माना जाता है।
👉 होलाष्टक में नहीं करने चाहिए ये 5 काम
1- शादी-
शादी हर व्यक्ति के जीवन का सबसे अहम फैसला होता है। शादी का बंधन बेहद पवित्र और शुभ माना गया है। यही कारण है कि हिंदू धर्म मे होलाष्टक में विवाह करने की मनाही होती है।
2- नामकरण संस्कार-
व्यक्ति अपने नाम से ही भविष्य में दुनियाभर में अपनी पहचान बनाता है। व्यक्ति के जीवन पर सबसे ज्यादा उसके नाम का असर पड़ता है। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि नामकरण संस्कार को शुभ काल में किया जाए।
3-विद्या आरंभ- बच्चों की शिक्षा की शुरुआत भी इस काल में नहीं की जानी चाहिए। शिक्षा किसी के भी जीवन के सबसे शुभ कार्यों में से एक है। जब अपने बच्चे को किसी गुरु के देखरेख में दिया जाए तो वह शुभ काल हो। ऐसा करने से बच्चा तेजस्वी बनता है।
4-संपत्ति की खरीद-बिक्री-
हो सकता है कि आपने जो संपत्ति खरीदी या बेची है, वह बाद में आपके लिए परेशानी का सबब बन जाए। इसलिए होलाष्टक में संपत्ति की खरीद-बिक्री नहीं करनी चाहिए।
5-नया व्यापार और नई नौकरी-
आप नया व्यापार शुरू करना चाहते हैं या फिर कोई नई नौकरी शुरू करने वाले हैं तो अच्छा होगा उसके लिए होलाष्टक के दिनों को न चुने। होलाष्टक के बाद इन कार्यों को करें। ऐसा करने से सकारात्मक ऊर्जा आपके साथ रहेगी और आप जीवन में जल्द सफलता हासिल करेंगे।
👉 होलाष्टक की पौराणिक मान्यता
फाल्गुण शुक्ल अष्टमी से लेकर होलिका दहन अर्थात पूर्णिमा तक होलाष्टक रहता है. इस दिन से मौसम की छटा में बदलाव आना आरम्भ हो जाता है. सर्दियां अलविदा कहने लगती है, और गर्मियों का आगमन होने लगता है. साथ ही वसंत के आगमन की खुशबू फूलों की महक के साथ प्रकृ्ति में बिखरने लगती है. होलाष्टक के विषय में यह माना जाता है कि जब भगवान श्री भोले नाथ ने क्रोध में आकर काम देव को भस्म कर दिया था, तो उस दिन से होलाष्टक की शुरुआत हुई थी।
होलाष्टक से जुडी मान्यताओं को भारत के कुछ भागों में ही माना जाता है. इन मान्यताओं का विचार सबसे अधिक पंजाब में देखने में आता है. होली के रंगों की तरह होली को मनाने के ढंग में विभिन्न है. होली उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, तमिलनाडू, गुजरात, महाराष्ट्र, उडिसा, गोवा आदि में अलग ढंग से मनाने का चलन है।
हमारे क्षेत्र में मान्यता है कि फागुन के दिनों में या ऐसी कहावत है कि होली की झल के नीचे कोई शुभ कार्य या अन्य परिवारिक कार्य नहीं करना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं है, ये सब कार्य हम फागुन में कर सकते हैं, केवल होली से आठ दिन पूर्व से होलिका दहन तक सब कार्य वर्जित हैं, हमारे सनातन धर्म शास्त्रों का ऐसा कथन है।
👉 ज्योतिषीय गढना अनुसार
लखनऊ, वरिष्ठ ज्योतिषाचार्य श्रीधीरजी #Shreedheerji कहते हैं कि गोचर वश कुम्भ राशिष्ठ सूर्य कुंडली को केंद्र मानकर अशुभ षष्ठेश का पंचम षष्ठ सप्तम भाव में संचार वश बनी असंतुलित मन आत्मा की स्तिथि अस्थिर विचारो एवं कष्टकारी स्तिथियो का निर्माण करती है। अतः होलाष्टक अवधि दौरान शुभकर्म-निषेध पालन आवश्यक बताया गया है।
सत्य है शिव है सुन्दर है,,,
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