• इन्सान के मन की संकल्प-शक्ति और ईच्छा-शक्ति - विचारों को जन्म देती है । ये विचार अच्छे भी हो सकते है और बुरे भी हो सकते हैं । फिर एक प्रक्रिया का जन्म होता है - एक वैचारिक शक्ति का उदय होता है । इस वैचारिक शक्ति से शरीर मे थरथराहट पैदा होती है जो बढ़ती जाती है फिर एक लहर के रूप में परिवर्तित हो जाती है और धीरे-धीरे इसमे दबाव पैदा करने की शक्ति आ जाती है । ये दबाव व्यक्ति को कर्म करने को प्रेरित करता है । इससे व्यक्ति उस दिशा में कर्म करता है - जैसी उसकी वैचारिक शक्ति होती है । यहीं से ये शक्ति शरीर की आवश्यकता के अनुसार ऊर्जा के विभिन्न रूपों में प्रकट होती है । फिर - ये ऊर्जा शरीर पर प्रभाव डालने लगती है ।
विभिन्न रूपों में ऊर्जा का एक रूप परमाणु अथवा अणु के रूप में प्रकट होता है । जिससे शरीर के ऊतक अथवा कोशिकायें बनती है और फिर इनसे शारीरिक अंग पुष्ट होते है अथवा नये अंग बनते है ।
अब - अच्छे विचार, रचनात्मक विचार और उन्नतिशील विचार इंसान को सुंदर, हष्ट-पुष्ट और सफल बनाते हैं । लेकिन - बुरे विचार, विध्वंसक विचार और नकारात्मक विचार इन्सान को असुंदर, रोगी और मलिन बनाते हैं ।
अपनी ऊर्जा को हम जिस रूप में उपयोग करेंगे उसका वैसा ही फल हमारे समक्ष प्रकट होगा । इसका जन्म हमारे विचारों से होता है ।
हमारे विचार - हमारे मन से उपजते है और मस्तिष्क में पनपते है । हमारे मन का कारक ग्रह - चंद्र है । कुण्डली में चंद्र की स्थिति दर्शाती है कि - आपके विचार कैसे हैं ? हमारी बुद्धी का कारक बुध है और कुण्डली में बुध की स्थिति दर्शाती है कि - हमारे विचार कैसे पनपते है । जब ये दोनों पीड़ित होते है - तभी मनोविकार पैदा होता है । जब - ये दोनों बलवान होते हैं - तभी व्यक्ति बुद्धीमान, सफल और आकर्षक होता है ।
जहाँ - बलवान चंद्र, व्यक्ति को व्यवहार कुशल और दुनियादारी में दक्ष बनाता है । वहीं - उसके विचारों को रचनात्मक और सुन्दर बनाता है - जिससे व्यक्ति उत्साहित रहता है और उसके शरीर मे प्रफुल्लित ऊतकों और कोशिकाओं का निर्माण होता है और व्यक्ति निरोगी रहता है । इसके विपरीत निर्बल चंद्र, व्यक्ति को निराश और हतोत्साहित बनाता और उसके अंतर्मन में मलिन तथा विध्वंसक विचारों का जन्म होता है - जिससे उसके शरीर मे निर्बल ऊतकों और कोशिकाओं का निर्माण होता है - जो अंत मे रोग का कारण बनते हैं ।
वैसे - तो चंद्र और बुध को बलवान बनाने के बहुत से उपाय हैं ।
जैसे - रत्न पहनना, पूजा-पाठ और मंत्रोउच्चारण करना, यंत्र स्थापित करना, इन दोनो ग्रहों से संबंधित खान-पान, रंग और जड़ी-बूटी का उपयोग करना - इत्यादि ।
लेकिन - प्राणायाम इसका सबसे बेहतरीन उपाय है । प्राणायाम करने से फेफड़ों की कार्यक्षमता बढ़ती है और इससे कुण्डली में कर्क-राशि बलवान होती है - जिसका स्वामी चंद्र है । जब फेफड़े सशक्त होकर कार्य करते हैं - तो अधिक ऑक्सिजन को शरीर मे प्रवेश कराते है । ऑक्सिजन का स्वामी बुध है । बुध - चंद्र का पुत्र है । बाप, बेटे के लिये रास्ता तो बनाता ही है । निरन्तर प्राणायाम करने से मेटाबॉलिज़्म को बूस्ट मिलता है जिससे खाना सहज ही पच जाता है और शरीर हष्ट-पुष्ट बनता है । इससे पेट साफ होता है और छोटी-आँत ज्यादा लचीली हो जाती है - जिसका स्वामी बुध है ।
जब शरीर मे ऑक्सिजन की बढ़ोतरी होती है तब शरीर से कार्बन-डाइऑक्साइड विदा होने लगती है । कार्बन-डाइऑक्साइड - राहु है । जब राहु का प्रभाव कम होने लगे तो सहज ही मलिन, बुरे और विध्वंसक विचार कम हो जायेंगे । शरीर मे ऑक्सीजन और कार्बन-डाइऑक्साइड का अनुपात ही शरीर के रोगी और निरोगी होने को तय करता है ।
जब - पेट साफ हो, छोटी आँत लचीली हो और शरीर हष्ट-पुष्ट हो तो 'पिट्यूटरी-ग्लैण्ड' पीयूष-ग्रंथि हरकत में आती है । इसका स्वामी भी बुध है - ये हरकत में हो तो विचारों को उन्नतिशील ढंग से पनपने का मौका मिलता है । ये दाहिने कान के ऊपर और माथे के अन्तिम छोर पर होती है । इसकी हरकत फिर एक चमकीली नीली लहर को पैदा करती है जो पिनियल-ग्लैण्ड की ओर जाती है । पिनियल-ग्लैण्ड अथवा आज्ञा-चक्र का स्वामी चंद्र है । सूर्य भी आज्ञा-चक्र का स्वामी है - परन्तु को किसी और सन्दर्भ में है । बहरहाल, पिनियल-ग्लैंड से न्यूरॉन्स की सप्लाई होती है - जो शरीर के सुरक्षा-तंत्र को मजबूत करते हैं । पिनियल-ग्लैंड अथवा आज्ञा-चक्र के सक्रीय होने से विचारों पर भी नियंत्रण हो जाता है ।
इस तरह प्राणायाम करने से चंद्र और बुध तथा इनके उपकरण बलवान होते चले जाते हैं ।
सुरेश भारद्वाज - उल्हासनगर, मुम्बई
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