यह दशा , अंतर्दशा , प्रत्यंतर दशा , सूक्ष्म प्रत्यंतर दशा कैसी बीतेगी , इसका निर्धारण कुंडली में ग्रह की स्थिति के अनुसार होता है । यदि ग्रह उच्च का है या शक्तिवान है तो दशा अच्छी बीतेगी और यदि कमजोर है तो खराब । हर स्थान के ग्रह स्वामित्व के अनुसार स्थूल रूप में दशा का प्रभाव निम्न प्रकार से जाना जा सकता है
लग्नेश की दशा जातक अपने शुभचिंतकों और रिश्तेदारों से घिरे रहेंगे ।
द्वितीयेश की दशा परिवार को बसाने में व्यस्त रहेंगे । पारिवारिक जीवन सुखपूर्वक बीतेगा ।
तृतीयेश की दशा अप्रिय परिणाम , निराशा और असफलता । चतुर्थेश की दशा धन - सम्पत्ति का जुड़ना , वैभवपूर्ण जीवन होना ।
पंचमेश की दशा संतान - सुख , बौद्धिक विनोद , प्रतिभा दिग्दर्शन में सफलता , ज्ञानार्जन , लॉटरी इत्यादि से अचानक धन लाभ ।
षष्ठेश की दशा रोग , शत्रु से भय ( परंतु क्रूर ग्रह हो तो शत्रुओं या रोगों का हनन ) ।
सप्तमेश की दशा विवाह , प्रेम - संबंध , यौन - सुख ।
अष्टमेश की दशा रोग - निवृत्ति ( या संभावित मृत्यु यदि अन्य ग्रह ऐसा इंगित करते हों ) , गड़े हुए धन का लाभ ।
नवमेश की दशा भाग्योदय , धर्म का काम , पुरखों की परम्परा आगे बढ़ाने में योगदान ।
दशमेश की दशा कार्यक्षेत्र में सफलता , राज्य से मान या मान्यता , सट्टे से लाभ ।
एकादशेश की दशा विभिन्न गतिविधियों से लाभ । मित्रों का सहयोग , आय में बढ़ोतरी ।
द्वादशेश की दशा बीमारियों पर व्यय , मानसिक पीड़ा , परोपकार में धन लगाना ।
इन ग्रह स्वामियों की दशा का प्रभाव ग्रहों की अपनी स्थित के
अनुसार घटता - बढ़ता है । यदि कोई ग्रह किसी केन्द्र और त्रिका स्थानों का स्वामी हो तो वह योगकारक ग्रह हो जाता है और बेहद सुख परिणाम देता है । जैसे तुला और वृष लग्न दोनों के लिए शनि योगकारक ग्रह होता है क्योंकि शनि क्रमशः चौथे - पाँचवें ( केन्द्र व त्रिकोण ) और नवें - दसवें ( त्रिकोण व केन्द्र ) स्थानों का स्वामी होता है । जो ग्रह द्वितीय व सप्तम भाव का स्वामी होता है , उसे ' मारकेश ' यानी मारक स्थानों का स्वामी कहते हैं । मारकेश की दशा मृत्यु या मृत्यु तुल्य कष्ट देने वाली होती है । यदि मंगल 1,4,7,8 , 12 स्थानों में हो तो जातक ' मंगली ' कहलाता है । उसकी शादी में रुकावटें जरूर आती हैं , परंतु यदि सम शनि का मंगली जातक मिल जाए तो ऐसे विवाह बेहद सफल रहते हैं ।
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