*१, अस्त ग्रह से आप क्या समझते हैं?*
अस्त ग्रह से आशय उन ग्रहों से है, जो अंशात्मक रूप से सूर्य के इतने निकट होते हैं कि वह अपना प्रभाव खो देतें हैं।
फलदीपिका के अनुसार ग्रहों का सूर्य से इतना सामीप्य की वह सूर्य के तेज में दिखाई नहीं देते, उसे अस्त ग्रह कहते हैं।
*२, अस्त ग्रहों के क्या फल होते हैं?*
अस्त ग्रह अपने पूर्ण फल देने मे अक्षम होते है।
*३, कोई भी ग्रह अस्त कब होता है?*
*चन्द्रमा* सूर्य से 12° आगे या पीछे हो तो अस्त होता है। यह अमावस्या का समय होता है।
*मंगल* यह सूर्य से 17° आगे या पीछे अस्त रहता है।
*बुध* मार्गी होने पर सूर्य से 14° दूर हो तो अस्त होता है। यदि वक्री हो तो 12° दूरी पर अस्त होता है। कहि अध्ययन में आया था कि बुद्ध को अस्त का दोष नहीं लगता।
*बृहस्पति* सूर्य से 11° दूरी तक अस्त होता है।
*शुक्र* मार्गी होनेपर सूर्य से 10° दूरी पर अस्त होता है, किंतु वक्री होने पर 8° तक अस्त होता है।
*शनि* सूर्य से 15° डिग्री तक आगे पीछे होने से अस्त होते हैं।
*ध्यान देवें* सौर मंडल में जो ग्रह पृथ्वी की अपेक्षा सूर्य से निकट हैं, उन्ही के वक्री होने पर अस्त बिंदु भिन्न होगा।
*४, किसी कुंडली में दो से अधिक ग्रह अस्त हो तो उस कुंडली के बल को कैसे देखें?*
किसी भी कुंडली में दो से अधिक ग्रहों के अस्त होने पर कुंडली प्रभाव हीन सी हो जाती है। उस अवस्था में कुंडली में कितने भी अच्छे राजयोग ही क्यों न हो उनके प्रभाव में अल्पता आ ही जाती है।
ऐसी कुंडली वाले जातकों में अनुभव किया है कि उनके जीवन में संघर्ष अधिक रहता है। क्योंकि तीन ग्रह के अस्त होने पर अधिकांशतः ग्रह व भाव उनके प्रभाव में होते हैं। जैसे यदि ये तीनो ग्रह 2-दो राशियों के स्वामी हो तो 50% कुंडली के बल में न्यूनता आ जाती है। अब अन्य ग्रह नवमांश में इनकी राशियों में है तो वह भी फल देने मे शिथिल होंगे।
सूर्य केवल अपने साथ विराजित ग्रह को ही अस्त नहीं करता । वह अपने से एक घर आगे व एक घर पीछे बैठे ग्रहों को भी अस्त करता है।
जैसे :- सिंह राशि मे सूर्य 4° का है व बृहस्पति मिथुन राशि में 25° के हैं, तो बृहस्पति अस्त होंगे।
राहु व केतु छाया ग्रह हैं। अतः यह अस्त नहीं होते वरन सूर्य को ग्रहण लगा देते हैं। पर इसके लिए दोनों ग्रहों का पारस्परिक, डिग्रिकल बलाबल देखना चाहिए। की कौन सा ग्रह बलवान है।
*अस्त ग्रहों का प्रभाव* कुंडली में कोई ग्रह कितना भी योग कारक हो पर वह नवमांश में अस्तग्रहों की राशि में है, तो वह अपना पूर्ण फल नही देपाता।
*अस्त ग्रह अपने कारकों के फल व जिन भावों का स्वामी हो उनके कारकों के फल में न्यूनता कर देतें है।*
*अर्थात उनका पूर्ण फल नही मिलता। कदाचित इसीलिए 6, 8, 12 का स्वामी अस्त होने पर कुछ विद्वानों द्वारा इसे अच्छा माना जाता है।*
*पर कोई भी भाव पूर्णतया शुभ या अशुभ नही होता है, इसका भी ध्यान रखना आवश्यक है।*
इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि सूरज के उपस्थिति में अग्नि की लौ दिखती नही, अर्थात उसका प्रकाश नहीं दिखता, पर यदि हमारा हाथ चला जाए तो जलाता अवश्य है।
*अस्त बुध विचार, शुभ या अशुभ* बुध सदैव सूर्य से 28° आगे या पीछे रहता है। अधिकांशतः यह सूर्य के साथ ही होता है। जो बुध आदित्य योग बनता है। परंतु बुध आदित्य योग का फल तभी मिलता है, जब बुध व सूर्य का अंतर 10° से 14° के मध्य हो। बुध का अशुभ प्रभाव सूर्य के अधिक निकट होने से लगभग 3 से 4 डिग्री पर मिलता है। बुध मार्गी होकर सूर्य से पीछे हो या वक्री होकर सूर्य से आगे हो तब बुध बलहीन हो जाता है। क्योंकि इस स्थिति में वह सूर्य की ओर बढ़ रहा होता है।
अस्त बुध, सूर्य के साथ होने पर सूर्य जिस भाव का स्वामी हो उसके अनुसार फल देता है।
कुंडली में सूर्य योग कारक हो, तथा मारक व 6, 8, 12 भावों का स्वामी न हो तो बुद्ध उत्तम फल देता है।
सूर्य मेष, सिंह व धनु लग्न में योगकारक होने से बुध उत्तम फल देगा।
कन्या, मकर व मीन लग्न में सूर्य त्रिक भाव का स्वामी होने से यहाँ बुध अशुभ होता है, या वह शुभ फल नही दे पाता है।
सूर्य जब किसी शुभ भाव का स्वामी हो, योगकारक हो, तब बुध अस्त होने के पश्चात भी अपनी दशा-अंतर्दशा में सफलता देता है। बुध जब अस्त के साथ वक्री भी हो, तब जातक को समस्याओं से सामना होता है। कुंडली में जब बुध, सूर्य से 2 से 3 डिग्री की दूरी पर हो तब भी जीवन मे समस्याएं आती है।
सूर्य 6, 8, 12 का स्वामी न हो और बुध अशुभ भाव का स्वामी हो, तथा वक्री न हो तो अस्त बुध अच्छा फल देता है।
गुरु शुक्र से युति या गुरु की दृष्टि होने पर भी अस्त बुध शुभ प्रभाव देता है।
अब जो रह गया था। बारहों भाव के स्वामी लग्न से लेकर व्यय भाव तक किस भाव के स्वामी के अस्त होने से क्या फल मिलेगा?
ज्योतिषाचार्य*
*राजेश कुमार सरवैया*
*महासमुंद, छत्तीसगढ़*
*9009959989*
यहाँ समझने वाली बात यह है, कि त्रिक भवो के स्वामी अस्त होने पर उनके अशुभत्व में कमी आएगी। जिससे यह स्थिति जातक के लिए लाभदायक सिद्ध होगी, पर जैसा की हम जानते हैं कोई भी भाव पूर्णतः अशुभ या शुभ नहीं होता। सभी भाव मे कुछ शुभ व कुछ अशुभत्व होता है।
जैसे हम लग्न को ही लें, यह जातक के लिए शुभ है, क्योंकि शरीर के अनुपस्थिति में तो धर्म भी नहीं होता, किंतु यही कुटुम्ब भाव, मामा के लिए षष्ठ भाव व अष्टम भाव पत्नी का परिवार अर्थात ससुराल के लिए शुभ नही है। क्योंकि इस भाव का उनसे द्विद्वादश व षडाष्टक सम्बन्ध बन रहा है। अतः छठे भाव का स्वामी अस्त होगा तो मामा के सुख में भी कमी कर सकता है, अष्टम भाव का स्वामी अस्त होगा तो पैतृक संपत्ति के लाभ में गूढ़ ज्ञान में व ससुराल से मिलने वाले लाभ में अल्पता हो सकती है। द्वादश भाव का स्वामी अस्त होने से शैया सुख में कमी, विदेश गमन या बाहरी क्षेत्र से लाभ में कमी भी हो सकती है। अब कौन सा अस्त ग्रह क्या फल देगा यह तो निश्चित है, पर यह पूर्णतः कुंडली विश्लेषक के विवेक पर निर्भर करता है कि हम सत्यता के कितने समीप पहुँच सकते हैं। अन्य भावों के स्वामी अस्त होने पर मुख्यतः शुभ प्रभाव में कमी करेंगे पर उनसे भी कुछ अच्छे फल प्राप्त होंगे, जिसका विश्लेषण हमारे विवेक पर निर्भर करेगा।
*ज्योतिषाचार्य*
*राजेश कुमार सरवैया*
*महासमुंद, छत्तीसगढ़*
*9009959989*
🙏🕉जय श्री कृष्ण🕉🙏
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