स्वयं समझे अपनी लग्न और जन्म राशि को देखने का तरीका
भारतीय ज्योतिष विद्या का जन्म भी वेदों से हुआ है वेद से जन्म लेने के कारण इसे वैदिक ज्योतिष के नाम से जाना जाता है । भारतीय ज्योतिष में यह मान्यता है कि ब्रह्मांड में कुल 9 ग्रह ,12 भाव, 27 नक्षत्र व 12 राशियां है सूर्य परिवार में 7 ग्रह व दो छाया ग्रह है जो क्रमशः अपनी अपनी गति से पृथ्वी का चक्कर लगाते रहते हैं ।
भारतीय ज्योतिष शास्त्र पृथ्वी को केंद्र मानकर चलती है। राशीचक्र वह व्रत है जिस पर नवग्रह घूमते हुए से प्रतीत होते हैं । इसी राशि चक्र को अगर 12 भागों में विभाजित किया जाए ,तो प्रत्येक भाग एक राशि कहलाएगा । यह 12 राशियां इस प्रकार होगी पहली मेष दूसरी वृष तीसरी मिथुन चौथी कर्क पांचवी सिंह छठी सातवी तुला आठवीं वृश्चिक 9 धनु 10 मकर 11 कुंभ 12 मीन।
जैसे राशि चक्र को 12 भागों में विभाजित करने पर हमें 12 राशियां मिली उसी प्रकार अगर इस राशि चक्र को 27 भागों में बांटते हैं तो हमें 27 नक्षत्रों का पता चलता है । एक वृत्त को 360 कला या डिग्री में बांटा गया है इसलिए एक राशि 30 कला या 30 अंश की हुई ।
प्रत्येक राशि का एक स्वामी ग्रह होता है जो निम्न प्रकार है
जिसमें सूर्य व चंद्र एक-एक राशि के स्वामी होते हैं अन्य ग्रह 2 राशियों के स्वामी होते हैं राहु व केतु किसी भी राशि के स्वामी नहीं माने गए हैं । किसी भी व्यक्ति की जन्म पत्रिका उसके जन्म समय का चित्र कहा जाता है । कुंडली या जन्मपत्रिका को देखकर यह कहा जा सकता है कि जन्म के समय आकाश में ग्रहों की स्थिति क्या थी । कुंडली में प्रथम ग्रहों का आकलन दो प्रकार से किया जाता है प्रथम वह ग्रह किस राशि में स्थित है और दूसरा वह ग्रह किस भाव में स्थित है।
क्या होती है लग्न और जन्म राशि
पृथ्वी अपने अक्ष पर 24 घंटे में एक बार पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है इस कारण से ही ग्रह नक्षत्र व राशियां 24 घंटे में एक बार पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर घूमते हुए प्रतीत होते हैं इस परिक्रमा में ही सभी राशियां और तारे 24 घंटे में एक बार पूर्व की ओर उदित और पश्चिम क्षितिज पर अस्त होते हुए नजर आते हैं । जब भी कोई व्यक्ति जन्म लेता है ,तो उस समय अक्षांश और देशांतर में जो राशि पूर्व क्षितिज पर उदित होती है वह राशि ही व्यक्ति की लग्न होती है। कुंडली में लग्न राशि प्रथम भाव में लिखी जाती है। कुंडली में 12 भागों को घड़ी के विपरीत दिशा में ही क्रमवार गिनते हुए राशि अंकित करते हैं । दाएं से बाएं क्रमवार राशियों की स्थापना सर्वप्रथम की जाती है। राशि का सूचकांक ही अनिवार्य रूप से 12 भाव में भरा जाता है। जैसे मेष के लिए एक वृष के लिए 2 मिथुन के लिए 3 । ऐसे ही 12 भावों में रशिया क्रम वार भरी जाती है । जन्म के समय चंद्र जिस राशि में स्थित होते हैं वह जन्म राशि कहलाती है।
भाव और राशि में अंतर
प्रत्येक कुंडली में 12 भाग होते हैं जिसमें 8 त्रिकोण आकार के और 4 आयताकार होते हैं । चार आयताकार भाव को में प्रथम भाग लग्न कहलाता है और वही प्रथम भाव होता है प्रथम भाव से दाएं से बाएं एंटी क्लॉक वाइज द्वितीय भाव तृतीय व क्रमवार गिनते हुए 12वे भाव तक आते हैं ।
भाव को हाउस या खाना भी कहा जाता है। भाव हमेशा स्थिर ही रहते हैं जैसे पहला आयताकार भाव प्रथम भाव हुआ तो वह हमेशा प्रथम ही भाव कहा जाएगा और क्रमवार गिनने पर वह 12 भाव हमेशा स्थिर ही रहेंगे। लेकिन इन भावों पर अंकित संख्या या राशि प्रत्येक कुंडली में बदली हुई नजर आती है । हम यह कहेंगे कि भाव व राशियां चलाएं मान होती हैं। जैसे प्रथम भाव पर दो नंबर अर्थात वृष राशि हो सकती है या फिर आठ नंबर वृश्चिक राशि हो सकती है । प्रथम भाव पर स्थित संख्या ही लग्न मानी जाती है। कुंडली में स्थित 12 भाव हमेशा स्थिर रहते हैं या तो हमने जाना अब यह भी जानेंगे कि प्रत्येक भाव का स्वामी भी होता जो बदलता रहता है जैसे प्रथम भाव में अगर दो नंबर वृषभ राशि मिली हुई है तो प्रथम भाव के स्वामी ग्रह शुक्र कहलाएंगे 2सरे भाव मिथुन राशि हुई दुइत्तीय भाव के स्वामी ग्रह बुध होंगे । प्रथम भाव के स्वामी ग्रह को लग्नेश 2रे भाव के स्वामी ग्रह को द्वितीऐश तृतीय भाव के स्वामी ग्रह को तृतीऐश व क्रमवार ऐसे ही आगे भी हम लिखेंगे ।
ग्रहों की भाव गत स्थिति
उदाहरण कुंडली में लग्न प्रथम भाव में दो अर्थात वृषभ राशि मिली और प्रथम भाव के स्वामी ग्रह शुक्र जो अपने ही राशि में स्थित है और प्रथम भाव में ही द्वितीय भाव के स्वामी ग्रह बुध भी लग्न अर्थात प्रथम भाव में स्थित है राहु ग्रह 2त्तीय भाव में दाएं से बाएं पर स्थित है छठे भाव में शनि सप्तम भाव में गुरु अष्टम भाव में चंद्रमा केतु व द्वादश भाव में मंगल व सूर्य स्थिति है । इन ग्रह स्थिति को हम भावगत स्थिति कहेंगे ।
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