बहुत आगे बढ गए हम ..इसके पूर्व की सारी कडियों को पढने के लिए
एक सप्ताह बाद अपने रिश्तेदारी के एक विवाह से लौटी मेरी बहन ने कल एक प्रसंग सुनाया। उस विवाह में दो बहनें अपनी एक एक बच्ची को लेकर आयी थी। हमउम्र लग रही उन बच्चियों में से एक बहुत चंचल और एक बिल्कुल शांत थी। उन्हें देखकर मेरी बहन ने कहा कि इन दोनो बच्चियों में से एक का जन्म छोटे चांद और एक का बडे चांद के आसपास हुआ लगता है। वैसे तो उनकी मांओं को हिन्दी पत्रक की जानकारी नहीं थी , इसलिए बताना मुश्किल ही था। पर हिन्दी त्यौहारों की परंपरा ने इन तिथियों को याद रखने में अच्छी भूमिका निभायी है , शांत दिखने वाली बच्ची की मां ने बताया कि उसकी बच्ची दीपावली के दिन हुई है यानि ठीक अमावस्या यानि बिल्कुल क्षीण चंद्रमा के दिन ही और इस आधार पर उसने बताया कि दूसरी यानि चंचल बच्ची उससे डेढ महीने बडी है। इसका अर्थ यह है कि उस चंचल बच्ची के जन्म के दौरान चंद्रमा की स्थिति मजबूत रही होगी। ज्योतिष की जानकारी न रखने वालों ने तो इतनी छोटी सी बात पर भी आजतक ध्यान न दिया होगा। क्या यह स्पष्ट अंतर पुराने जमाने के बच्चों में देखा जा सकता था ? कभी नहीं , आंगन के सारे बच्चे एक साथ उधम मचाते देखे जाते थे , कमजोर चंद्रमा के कारण बच्चे के मन में रहा भय भी दूसरों को खेलते कूदते देखकर समाप्त हो जाता था। मन में चल रही किसी बात को उसके क्रियाकलापों से नहीं समझा जा सकता था।
एक सप्ताह बाद अपने रिश्तेदारी के एक विवाह से लौटी मेरी बहन ने कल एक प्रसंग सुनाया। उस विवाह में दो बहनें अपनी एक एक बच्ची को लेकर आयी थी। हमउम्र लग रही उन बच्चियों में से एक बहुत चंचल और एक बिल्कुल शांत थी। उन्हें देखकर मेरी बहन ने कहा कि इन दोनो बच्चियों में से एक का जन्म छोटे चांद और एक का बडे चांद के आसपास हुआ लगता है। वैसे तो उनकी मांओं को हिन्दी पत्रक की जानकारी नहीं थी , इसलिए बताना मुश्किल ही था। पर हिन्दी त्यौहारों की परंपरा ने इन तिथियों को याद रखने में अच्छी भूमिका निभायी है , शांत दिखने वाली बच्ची की मां ने बताया कि उसकी बच्ची दीपावली के दिन हुई है यानि ठीक अमावस्या यानि बिल्कुल क्षीण चंद्रमा के दिन ही और इस आधार पर उसने बताया कि दूसरी यानि चंचल बच्ची उससे डेढ महीने बडी है। इसका अर्थ यह है कि उस चंचल बच्ची के जन्म के दौरान चंद्रमा की स्थिति मजबूत रही होगी। ज्योतिष की जानकारी न रखने वालों ने तो इतनी छोटी सी बात पर भी आजतक ध्यान न दिया होगा। क्या यह स्पष्ट अंतर पुराने जमाने के बच्चों में देखा जा सकता था ? कभी नहीं , आंगन के सारे बच्चे एक साथ उधम मचाते देखे जाते थे , कमजोर चंद्रमा के कारण बच्चे के मन में रहा भय भी दूसरों को खेलते कूदते देखकर समाप्त हो जाता था। मन में चल रही किसी बात को उसके क्रियाकलापों से नहीं समझा जा सकता था।
ग्रहों के
बुरे प्रभाव को दूर करने के लिए शुभ मुहूर्त्तों में जेवर बनवाने के बाद
हमने संगति की चर्चा की है। हमने कहा कि एक कमजोर ग्रह या कमजोर भाववाले
व्यक्ति को मित्रता , संगति , व्यापार या विवाह वैसे लोगों से करनी चाहिए ,
जिनका वह ग्रह या वह भाव मजबूत हो। आज के युग में जब लोगों का संबंध गिने
चुने लोगों से हो गया है , ग्रहों को समझने की अधिक आवश्यकता हो गयी है।
प्राचीन काल में पूरे समाज से मेलजोल रखकर हम अपने गुणों और अवगुणों को
अच्छी तरह समझने का प्रयास करते थे , हर प्रकार का समझौता करने को तैयार
रहते थे। पर आज अपने विचार को ही प्रमुखता देते हैं और ऐसे ही विचारो वालों
से दोसती करना पसंद करते हैं। यहां तक कि विवाह करने से पहले बातचीत करके
सामनेवाले के स्वभाव को परख लेते हें , जबकि दो विपरीत स्वभाव हो और दोनो
ओर से समझौता करने की आदत हो , तो व्यक्ति में संतुलन अधिक बनता है। पर
अब हमें समझौता करना नागवार गुजरता है , अपनों से सही ढंग से तालमेल बना
पाने वाले लोगों से ही संबंध बनाना पसंद करते हैं। ऐसी स्थिति में अपने और
सामनेवालों के एक जैसे ग्रहों के प्रभाव से उनका संकुचित मानसिकता का बनना
स्वाभाविक है।
इसके अलावे हमने ग्रहों के बुरे प्रभाव के लिए दान की चर्चा की है। हमलोग जब छोटे थे , तो हर त्यौहार या खास अवसरों पर नहाने के बाद दान किया करते थे। घर में जितने लोग थे , सबके नाम से सीधा निकला हुआ होता था। स्नान के बाद हमलोगों को उसे छूना होता था। दूसरे दिन गरीब ब्राह्मण आकर दान कए गए सारे अनाज को ले जाता था। वे लोग सचमुच गरीब होते थे। उन्हें कोई लालच भी नहीं होता था , जितना मिल जाता , उससे संतुष्ट हो जाया करते थे। हालांकि गृहस्थ के घरों से मिले इस सीधे के बदले उन्हें समाज के लिए ग्रंथो का अच्छी तरह अध्ययन मनन करना ही नहीं , नए नए सत्य को सामने लाना था , जिसे उन्होने सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों के बिगडने के दौरान पीढीयों पूर्व ही छोड दिया था। पर फिर भी किसी गरीब को दान देकर हम अच्छी प्रवृत्ति विकसित कर ही लेते थे , साथ ही बुरे वक्त में मन का कष्ट भी दूर होता ही है।
आज हमलोग उतने सही जगह दान भी नहीं कर पाते हैं। हमारे यहां एक ब्राह्मण प्रतिदिन शाम को आरती के बाद वह थाल लेकर प्रत्येक दुकान में घूमा करता है , कम से कम भी तो उसकी थाली में हजार रूपए प्रतिदिन हो जाते हैं। सडक पर आते जाते मेरे सामने से वह गुजरता है , मुझसे भी चंद सिक्के की उम्मीद रखता है , पर मैं उसे नहीं देती , मेरे अपने पुरोहित जी बहुत गरीब हैं , उन्हे देना मेरी दृष्टि में अधिक उचित है। जिस शहर में प्रतिदिन 12 से 14 घंटे काम करने के बाद एक ग्रेज्युएट को भी प्रतिमाह मात्र 2000 रू मिलते हों , वहां इसे शाम के दो घंटे मे 1000 रू मिल जाते हैं , उसको दिया जानेवाला दान दान नहीं हो सकता , पर आज ऐसे ही लोगों को दान मिला करता है। किसी भी क्षेत्र में पात्रता का हिसाब ही समाप्त हो गया है , इस कारण तो हर व्यक्ति ग्रहों के विशेष दुष्प्रभाव में है।
पर इन सब बातों को समझने के लिए यह आवश्यक है कि पहले हमें ग्रहों के प्रभाव को स्वीकार करना होगा। जिस तरह ऊपर के उदाहरण से मैने स्पष्ट किया कि चंद्रमा से बच्चे का मन प्रभावित होता हैं , उसी तरह बुध से किशोर का अध्ययन , मंगल से युवाओं का कैरियर प्रभावित होता हैं और शुक्र से कन्याओं का वैवाहिक जीवन। इसी प्रकार बृहस्पति और शनि से वृद्धों का जीवन प्रभावित होता है , इसलिए इन सारे ग्रहों की स्थिति को मजबूत बनाने के लिए संबंधित जगहों पर दान करना या मदद में खडे हो जाना उचित है। इसमें किसी तरह की शंका नहीं की जा सकती , सीधे स्वीकार कर लेना बेहतर है। कल अन्य उपाय यानि रंगों और पेड पौधों की वैज्ञानिकता पर बात की जाएगी !!
इसके अलावे हमने ग्रहों के बुरे प्रभाव के लिए दान की चर्चा की है। हमलोग जब छोटे थे , तो हर त्यौहार या खास अवसरों पर नहाने के बाद दान किया करते थे। घर में जितने लोग थे , सबके नाम से सीधा निकला हुआ होता था। स्नान के बाद हमलोगों को उसे छूना होता था। दूसरे दिन गरीब ब्राह्मण आकर दान कए गए सारे अनाज को ले जाता था। वे लोग सचमुच गरीब होते थे। उन्हें कोई लालच भी नहीं होता था , जितना मिल जाता , उससे संतुष्ट हो जाया करते थे। हालांकि गृहस्थ के घरों से मिले इस सीधे के बदले उन्हें समाज के लिए ग्रंथो का अच्छी तरह अध्ययन मनन करना ही नहीं , नए नए सत्य को सामने लाना था , जिसे उन्होने सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों के बिगडने के दौरान पीढीयों पूर्व ही छोड दिया था। पर फिर भी किसी गरीब को दान देकर हम अच्छी प्रवृत्ति विकसित कर ही लेते थे , साथ ही बुरे वक्त में मन का कष्ट भी दूर होता ही है।
आज हमलोग उतने सही जगह दान भी नहीं कर पाते हैं। हमारे यहां एक ब्राह्मण प्रतिदिन शाम को आरती के बाद वह थाल लेकर प्रत्येक दुकान में घूमा करता है , कम से कम भी तो उसकी थाली में हजार रूपए प्रतिदिन हो जाते हैं। सडक पर आते जाते मेरे सामने से वह गुजरता है , मुझसे भी चंद सिक्के की उम्मीद रखता है , पर मैं उसे नहीं देती , मेरे अपने पुरोहित जी बहुत गरीब हैं , उन्हे देना मेरी दृष्टि में अधिक उचित है। जिस शहर में प्रतिदिन 12 से 14 घंटे काम करने के बाद एक ग्रेज्युएट को भी प्रतिमाह मात्र 2000 रू मिलते हों , वहां इसे शाम के दो घंटे मे 1000 रू मिल जाते हैं , उसको दिया जानेवाला दान दान नहीं हो सकता , पर आज ऐसे ही लोगों को दान मिला करता है। किसी भी क्षेत्र में पात्रता का हिसाब ही समाप्त हो गया है , इस कारण तो हर व्यक्ति ग्रहों के विशेष दुष्प्रभाव में है।
पर इन सब बातों को समझने के लिए यह आवश्यक है कि पहले हमें ग्रहों के प्रभाव को स्वीकार करना होगा। जिस तरह ऊपर के उदाहरण से मैने स्पष्ट किया कि चंद्रमा से बच्चे का मन प्रभावित होता हैं , उसी तरह बुध से किशोर का अध्ययन , मंगल से युवाओं का कैरियर प्रभावित होता हैं और शुक्र से कन्याओं का वैवाहिक जीवन। इसी प्रकार बृहस्पति और शनि से वृद्धों का जीवन प्रभावित होता है , इसलिए इन सारे ग्रहों की स्थिति को मजबूत बनाने के लिए संबंधित जगहों पर दान करना या मदद में खडे हो जाना उचित है। इसमें किसी तरह की शंका नहीं की जा सकती , सीधे स्वीकार कर लेना बेहतर है। कल अन्य उपाय यानि रंगों और पेड पौधों की वैज्ञानिकता पर बात की जाएगी !!
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