Sunday, April 21, 2013

बहरूपिया

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बहरूपिया 
चपन में अक्सर माँ की  गोद में बैठ कर हमने बहरूपिया  देखेंगे  होंगे बहरूपिया  यानि एक ऐसा  व्यक्ति जो किसी और व्यक्ति का रूप धारण  करके उसकी जैसी साज़ सज्जा करके हमे मनोरंजन देकर कुछ पैसे कमाता था /हम बहूत डर  जाते थे और माँ से लिपट जाते थे लेकिन वो बहरूपिया  बस चंद  पैसो के लिए और चंद सेकेण्ड के लिए ही हमे डराता था /
 लेकिन समय के साथ बहरूपिया  जाति या ऐसे लोग विलुप्त  से हो गए  और दुसरे रोज़गार करने लागे / लोगो को इनमे कम मनोरंजन मिलता था जबकि  टी वी  और दुसरे साधनों में उन्हे कुछ और के साथ मनोरंजन जो मिलता था /
लेकिन वास्तव में बहरूपिया अच्छा था जिनका डर दिखा कर कभी माँ हमे खाना खिलाती कभी सुलाती थी कभी हमे शैतानियों पर कहा करती थी बुलाओ उस भूत को लेकिन वो भूत अब नहीं आया करता .. अब तो ..............................................
जाने कितने ऐसे  भूत समाज में आय दिन बिना बुलाय आ जाते है कभी बस वाले के रूप में कभी रिक्शा वाला कभी कभी डाक्टर तो कभी रिश्तेदारो के रूप में,पता नहीं किस रूप में ये बहरूपिया  बनकर हमारे बीच रहते है और मौका पाकर अपना  शिकार करते है फिर पूरा देश गुस्से से भर जाता है और टीवी चैनल्स से लेकर अखबारों तक हल्ला होता है विपक्षी पार्टियों से लेकर सड़क छाप  नेता तक आन्दोलन में शरीक हो जाते है और उस भीड़ में वो बहरूपिया  भी शामिल होता है उसकी आवाज़ भी उन  सब से तेज़ होती है और मौका पा  कर  वो अपने असली रूप में आ जाता है ...
लेकिन माँ मैं कैसे जिन्दा रहू इस समाज में जहा लोग सामाजिक होने  की बात करते है २१वी  शताब्दी में जी कर राक्षस योनि का काम करते है .. माँ कैसे पहचानू इन बहरूपिया  को जो अपने  मनोरंजन के लिए पूरी दुनिया की माताओ को डरा जाते है ..
वो बहरूपिया  अब मासूम बच्चियो को  अपनी हवश का शिकार बनाता  है जिससे कभी दिल्ली कभी यु पी कभी एम पी तो कभी बिहार के साथ पूरा देश रोता है / वो हमे डराते  है लेकिन मनोरंजन कदापि नहीं करते उनके  इस कृत्य से पुरे देश की माँ डर  जाया करती है /
की कही उनके आस पास भी तो कोई बहरूपिया  तो नहीं छिपा है /अभी ज्यादा दिन नहीं हुए थे जब दिल्ली के साथ पूरा देश रोया था किसी  ने बहादूर बिटिया तो किसी ने कुछ और कहा था ! समूचा देश गुस्से से जल उठा था तो क्या उस भीड़ में  वो  बहरूपिया  भी था लेकिन कोई पहचान ही नहीं पाया  / लेकिन समय बदलते ही वो बहरूपिया  अपना रूप बदल कर नित्य नए  रूप में सामने आ रहा है / आखिर क्यों करते है वो ऐसा  क्या मिलता है उनको ये सब करके का क्या उनकी परवरिश में कोई कमी रह गई  थी या कुछ और ! उन बहरूपियो  की  माँ भी रोती  होगी लेकिन उसे क्या पता था की उसका बेटा  एक बहरूपिया  है जिसको वो खुद न पहचान पाई ! क्या ये पश्चिमी सभ्यता का दोष है अगर हा तो वहा  ऐसे  मामले क्यों नहीं होते / आखिर उनके  मस्तिष्क   में चलता क्या है ,क्या वो सोचते है की जो इतना घिनौना काम वो कर बैठते है / क्या वो ऐसे  वातावरण में जी रहे होते है जहा यही सोच होती है क्या वो ऐसी चीजे खाते है जिनसे उनका मस्तिष्क ऐसा करने की सोचने लगता है आखिर वो ऐसा  कैसे कर बैठे है /
माँ बताओ मुझे क्यों पूरा देश शर्मशार  हो जाता है आखिर क्यों सारी  बेटिया  डर  जाती आखिर क्यों वो लोग अपनी सोच बदलने की सोचने लगते है जो ये कहते  है की कन्या भ्रूण हत्या एक अपराध है वो ये क्यों सोचते है की पहले हमे ऐसे बहरूपिये को ढूंढने की जरूरत है ऐसे बहरूपियो को ख़त्म  करने की जरूरत है जिनके दिमाग में ये सब चल रहा होता है / आखिर क्यों माँ ................]
आखिर माँ उन्हे क्या मिलता होगा ये सब करके क्या उन्हे जरा सी भी दया  नहीं आती होगी  उन मासूम चेहरो  को देखकर क्या वो वास्तव में राक्षस होते है क्या उन्हे उस ईश्वर  से डर  नहीं लगता .. क्या उन्हे लोग बाद में किस नज़र से देखंगे ? शायद नहीं ना माँ  माँ तुम शांत क्यों हो माँ बोलो न माँ माँ जानती हो बहरूपियो की वजह से जाने कितनी माताए खोख में बेटियों को मारने  का निश्चय कर लेती है माँ मैने भी  तो तुमसे कहा था
" माँ मार दो मुझको अभी....."

एक दिन खोई थी मैं अपने ही सपनो में ,
तन्हा  थी जब कि मैं बैठी थी अपनों में ....
आवाज़ दी मुझको किसी ने पर वहा कोई न था
गूंज मेरे कानो में गूंजती फिर भी रही

मानो  मुझसे कह रही हो माँ मुझे तुम मत बुलाओ
दुनिया की इस आग में घुट - घुट के मुझे मत जलाओ
मानव रूपी दानव मुझे समाज में जीने न देगा
मस्त परिंदे की तरह मुझे आकाश में उड़ने न देगा
रौंदकर देह मेरी कुचलेगा सपनो को मेरे
काट देगा पंख मेरे छोड़ देगा रक्त रंजित ,
रक्तरंजित.........
क्या मेरे इस दर्द को तब सहन कर पाओगी ?
मेरे ह्रदय की वेदना को दुनिया से कह पाओगी ?
माँ अभी हु मैं अजन्मी, जान हू तेरी अभी ,
दिल पर पत्थर रख लो माँ
मार दो मुझको अभी ....
 मार दो मुझको अभी अभी अभी अभी .......... लेकिन तुने मेरी बात न सुनी आज रो रही है तू घूट  घूट  कर लेकिन अब जिंदगी भर की घुटन दर्द और डर  लेकर  तू कैसे जियेगी माँ !

हमेशा से ही माँ अत्याचार शोषण महिलाओ पर ही तो होता रहा है और तुम सब ने सहन  भी किया है लेकिन अब ये मानव रूपी दानव तो हमे बचपन भी सही से नहीं जीने दे रहा  है / उन मासूम बच्चियों को नहीं मालूम था की वो जो सामने खड़ा  है वो राक्षस के रूप में मानव  है जो बहरूपिया बन कर मुझे रौंध  देगा मेरे साथ मेरे सपनो को मेरे साथ मेरी माँ के सपनो को मेरे साथ न जाने कितनी माँ की ममता को !  ये देश के लोग तो तब तक साथ देते है जब तक उन्हे  कोई काम नहीं होता,  तब तक साथ देते है जब तक टीवी  वाले खुली बहस करके सबका मनोरंजन करते है,  उसके बाद किसको याद रहता है , याद आता तब जब फिर  से कोई नई  बच्ची शिकार बनती है बहरूपियो का !
माँ तुम डरती हो क्योंकि तुम जानती हो उन बहरूपियो को जिनकी घिनौनी नजरे देखती थी तुम्हे माँ तुम जानती हो उन बहरूपियो को जिनकी आवाजे तुम्हारे कानो में जहर घोल जाया करती थी लेकिन माँ समय बदल चूका है ये वही बहरूपिये है जो अब देखते और बोलते ही नहीं है कुछ और भी कर जाया करते है माँ अब कैसे जियोगी तुम !
अब ऐसी खबरे सुन कर पूरे देश की माताओ  के दिल में भूकंप के साथ सुनामी और ज्वालामुखी  तक फट जाता है  क्यों न मानी मैने उस अभोध बच्ची की बात  ! लेकिन माँ तू चिंता  मत कर समय बदल  रहा है देश तरक्की कर रहा है कुछ होगा जो बदलेगा सबकी सोच देगा उन बहरूपियो को मुह तोड़ जवाब ,तब तू सीना चौड़ा करके  कहेगी   मैं माँ हु एक बेटी की ...
माँ तू मार देती मुझको कोख में अगर ...
नहीं होता तुझको दुःख इतना मगर ...
रोज़ जीना तुझको होता  मुझे था मरना एक बार ...
माँ अगर तू सुन लेती मेरे मन की ये पुकार ...
तब मरती मैं एक बार लेकिन जीती तू तो बार बार ...
नहीं होती दामनी गुडिया जैसी  खबरे...
होती गन्दी बहरूपिये  की नजरे वहा ...
क्यों रोती वो क्यों चीखती वो क्यों चिल्लाती वो
गर मार देती मेरी माँ कोख में मुझको तो ...
लेती मैं  बार बार जन्म होता क़त्ल   भ्रूण में बार बार ..
कुछ रोते कुछ हँसते और  कुछ अपनी( डाक्टर ) दुकाने सजाते हर बार ...
लेकिन अब आ गई हु इस दुनिया में जब बेटी बन कर
करुँगी उन राक्षसों का वध काली  बन कर
रोउंगी न डारूंगी न सिस्कुंगी उन बहरूपियो से
क्योंकि मैं हु नारी २१वी   सदी से
चुप हु जब तक चुप हु
जब  मैं बोलूंगी अपना रौद्र रूप खोलूंगी
तब मैं भी बनूँगी एक बहरूपिया करुँगी  नकली बहरूपियो का अंत अंत !

 



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