खबरों से खबर तक .....
एक पत्रकार जो खबरों को लिखता है मुद्दों को उठता है लोगो के सामने सच्चिया लता है अनजानेपहलुओ से लोगो को रूबरू करवाता है लेकिन क्या कभी ऐसा भी हो सकता है की छिपी हुई खबरों को जनता के सामने लाने वाला पत्रकार ही खुद एक दिन छिपी हुई खबर बन जाय और आम इन्सान से भी बदतर स्थित में जा कर रोती रोटी के लिए मोताज़ हो जाय ॥
देश के नाम चीन अखबारों में प्रमुख पदों में रहे , एक पत्रकार को जरुरत है अपनी मदद के लिए कुछ हाथो की जो उसका साथ दे सके क्या आप देंगे साथ ॥ उस कलम के सिपाही का जिसका अपने ही साथ छोड़ गय हो ...
नाम:-इन्द्र भूषण रस्तोगी
योग्यता हासिल:-वास्तु ,वैदिक ज्योतिष से पीएच।डी ,/,/ पत्रकारिता के सभी संभावित बड़े पदों पर ( ‘पायनिअर दैनिक’ ‘ट्रिब्यून’ ‘समाचार’ न्यूज" "अमर उजाला " "दैनिक भाष्कर " )
जोश और जूनून से भरे पत्रकारिता में कुछ अलग करने की चाहत और उनकी लेखनी उनका हथियार थी उनकी सटीक और विषयो और समाज को समझ ने उन्हे जल्द ही संघर्ष भरे जीवन से निकला और उन्हे देश के नामचीन अखबारों में काम करने का मौका मिला और उन्होंने दिए गय हर मौके को सार्थक करते हुए नित नए आयाम गड़ते हुए अपनी मंजिल की ओर बडते रहे पत्रकरिता के साथ साथ उन्होने ज्योतिष और वास्तु में भी अच्छी पकड बना ली थी .. और उनके इन्ही ज्ञान और लेखनी के बदौलत वो दैनिक जागरण से होते हुए अमर उजाला और उसके बाद दैनिक भास्कर के लिए काम करने लगे दैनिक भास्कर में रहते हुए उन्होने कई पदों पर काम किया ,
1976 में पत्रकार का कैरिअर अपनाने वाले श्री रस्तोगी ने कानपुर में दैनिक जागरण के अंग्रेजी अखबार से करिअर शुरू किया. फिर ‘पायनिअर दैनिक’ से होते हुए ‘समाचार’ न्यूज एजेंसी में चले गए. यहाँ से काम करते-करते वे ‘ट्रिब्यून’ में काम करने लगे. यहाँ से ‘पंजाब केसरी’ में अस्सिटेंट एडिटर के पद पर तैनात हुए.फिर वे
अमर उजाला में बरेली एडिशन के चीफ बनाए गए.भास्कर के शुरूआती दिनों की बात है जब वे अमर उजाला की प्रतिष्ठित नौकरी छोड़कर दैनिक भाष्कर के भोपाल
एडिशन के प्रमुख संपादक बनाए गए. तब के दैनिक भाष्कर के सुधार और उत्थान में आपकी महती भूमिका थी.
-- अभी जिंदगी बढ़िया चाल ही रही थी की श्री रस्तोगी को लकवे का अटैक पड़ गया .. और काफी दिनों तक काम से विरत रहने के बाद ग्रुप ने इन्हे हर संभव मदद भी की और सही होने के बाद इन्हे ज्यादा काम के बोझ से अलग करने के लिए ग्वालियर एडिशन जहा काम का बोझ काम था का काम सौपा गया जिससे की श्री रस्तोगी पूरी तरह ठीक होने के बाद इन्हे फिर से जिम्मेदरिया दे दी जाएँगी लेकिन लकवे का असर इतना था की इनको ग्वालियर एडिशन से भी हटा दिया गया .. और साथ ही भास्कर ग्रुप से भी अलविदा कह दिया गया लेकिन साथ ही ये बात अच्छी थी की भास्कर ग्रुप ने इनकी जगह इनकी बेटी को नौकरी पर रख लिया और इनका जीविका के लिए भास्कर ग्रुप की ओर से जितना भी धन मिला वो इनकी पत्नी एन ले लिया और साथ ही कुछ दिनों बाद पत्नी भी भास्कर ग्रुप में जुड़ गय लेकिन वक्त कभी वक्त पर कभी बे वक्त ऐसा समय लेकर आता है की आदमी टूट जाता है .. और ऐसा ही नहीं श्री इन्द्र भूषण रस्तोगी जी के साथ इनसे नौकरी और पैसा मिलने के बाद इन्हे बेसहारो की तरह छोड़ दिया गया ..
खैर कहते है की गर आप के अन्दर हुनर है तो सब कुछ है और अपनी कमजोर शरीर और मज़बूत कलम के सहारे इन्होने फिर से कई पत्र पत्रिकाओ में काम किया लेकिन आज की भागती दौड़ती जिंदगी और अपने से अपनों के षड़यंत्र ने इन्हे कही भी टिकने नहीं दिया ..और श्री इन्द्र भूषण रस्तोगी वापस कानपुर आ गय .. और अपने पुराने माकन में रहने लगे ..
जहा भागती दौड़ती जिंदगी में धीरे धीरे ये पिछड़ते चले गय और नॉएडा में सोनाली और अनुराधा की कहानी की तरह ही श्री रस्तोगी एक गुमानम इन्सान की तरह जिंदगी बिताने को मजबूर हो गय ..
धीरे धीरे उनका घर उनके लिए काळ कोठारी बनता गया सफाई के आभाव में आज भी उस कमरे में शायद ही कोई बैठने को राज़ी हो बदबू और सीलन जैसे कमरे की तरह जैसे उनके ऊपर भी हावी हो ...छत की ओर निहारते हुए रस्तोगी जी शुन्य में खो जाते है लेकिन वो छत भी कब उनका साथ छोड़ दे कहा नहीं जा सकता उनका आवास की दुर्दसा किसी भी प्रकार के उनके व्यकितव पर नहीं फब्ती है ..रस्तोगी जी को जानने वाले जानते है की अपने पत्रकारिता के समय में रस्तोगी जी कैसे बने ठाने रहते थे और उनका व्यकित्व ही उनकी पहेचान था लेकिन आज उनकी कपड़ो की हालात और कमरे की हालात देख कर कोई ये नहीं कह सकता की ये वही रस्तोगी जी है ..
लेकिन रस्तोगी जी बस एक और अदद मौके की तलाश में है जिससे की एक बार फिर फिर वो अपनी कलम की ताकत के बल पर खडे हो सके .. उनके साथ के सह कर्मचारी आज उनसे मिलो दूर चले गय है नॉएडा में घटी घटना में सब ने ये कहा वहा की जिंदगी तो है ही ऐसी लेकिन कानपुर में भी ऐसी स्थित हो सकती है पता नहीं था अपनों से अपनों की दुरी लगातर हर शहर में बडती जा रही है ..शायद अगर कुछ दिन और इसी तरह रस्तोगी जी गुमनामो की जिंदगी जीते रहते तो उनका भी यही हाल होता जैसा की सोनाली और अनुराधा का हुआ ?..
कभी अपनों को और अपनों से छोटे और अजनबियों को भी चाय नास्ता करवाना उनकी आदत सी थी लेकिन आज उन्हे इस बात का मलाल है की अपनी आदत होने के बाबजूद भी आज वो चाय तक पिलाने में अश्मर्थ है .. लेकिन उन्होने अपने जीवन में कभी भी हार नहीं मानी..., हा ये जरुर है की वो कहते है की ये मेरी किये गय कर्मो का परिणाम है जो मैं इस स्थित में हु आज मेरे अपने इस स्थित में नहीं है की मेरी मादामदद करे क्योंकि मैने भी कभी उनका साथ छोड़ दिया था उर जिनका साथ मैने दिया आज उन्होने मेरा साथ छोड़ दिया .. आज मेरे साथ कोई नहीं है न मेरा परिवार न मेरे मित्र और न ही पत्रकारिता के मेरे साथी ...
आज भी उनको लगता है की मेरी द्वारा तैयार की गय योजनाये और खबरे पूरी न हो सकी मैं अपना पूरा काम नहीं निपटा सका .. आधी जिंदगी ही भगवान ने शायद मेरे को दी थी ...
राकेश मिश्रा जिन्होने ही श्री इन्द्र भूषण रस्तोगी जी को ढूंढ़ निकाला है का सभी से यही निवेदन है की कानपुर और देश के पत्रकारों और संपादकों से अनुरोध है की उनकी आज की स्थिति के लिए उनका संवेदनशून्य रहना मानवता के साथ नाइंसाफी होगा. आशा करता हूँ की कानपुर का मालदार प्रेस क्लब स्वयं या फिर जिलाधिकारी के विवेकाधीन कोष सहित विभिन्न मदों से इस वरिष्ठ संपादक के मान-सम्मान और प्राणों की रक्षा में आगे बढ़कर सहयोग करेगा. उनके मालिकान रह चुके पून्जीपतिओं से भी उनकी इस दशा में सहयोग की आशा करता हूँ..
श्री इन्द्र भूषण रस्तोगी
रस्तोगी के आवास का पता है:
59/20 बिरहाना रोड कानपुर-208001
एक पत्रकार जो खबरों को लिखता है मुद्दों को उठता है लोगो के सामने सच्चिया लता है अनजानेपहलुओ से लोगो को रूबरू करवाता है लेकिन क्या कभी ऐसा भी हो सकता है की छिपी हुई खबरों को जनता के सामने लाने वाला पत्रकार ही खुद एक दिन छिपी हुई खबर बन जाय और आम इन्सान से भी बदतर स्थित में जा कर रोती रोटी के लिए मोताज़ हो जाय ॥
देश के नाम चीन अखबारों में प्रमुख पदों में रहे , एक पत्रकार को जरुरत है अपनी मदद के लिए कुछ हाथो की जो उसका साथ दे सके क्या आप देंगे साथ ॥ उस कलम के सिपाही का जिसका अपने ही साथ छोड़ गय हो ...
नाम:-इन्द्र भूषण रस्तोगी
योग्यता हासिल:-वास्तु ,वैदिक ज्योतिष से पीएच।डी ,/,/ पत्रकारिता के सभी संभावित बड़े पदों पर ( ‘पायनिअर दैनिक’ ‘ट्रिब्यून’ ‘समाचार’ न्यूज" "अमर उजाला " "दैनिक भाष्कर " )
जोश और जूनून से भरे पत्रकारिता में कुछ अलग करने की चाहत और उनकी लेखनी उनका हथियार थी उनकी सटीक और विषयो और समाज को समझ ने उन्हे जल्द ही संघर्ष भरे जीवन से निकला और उन्हे देश के नामचीन अखबारों में काम करने का मौका मिला और उन्होंने दिए गय हर मौके को सार्थक करते हुए नित नए आयाम गड़ते हुए अपनी मंजिल की ओर बडते रहे पत्रकरिता के साथ साथ उन्होने ज्योतिष और वास्तु में भी अच्छी पकड बना ली थी .. और उनके इन्ही ज्ञान और लेखनी के बदौलत वो दैनिक जागरण से होते हुए अमर उजाला और उसके बाद दैनिक भास्कर के लिए काम करने लगे दैनिक भास्कर में रहते हुए उन्होने कई पदों पर काम किया ,
1976 में पत्रकार का कैरिअर अपनाने वाले श्री रस्तोगी ने कानपुर में दैनिक जागरण के अंग्रेजी अखबार से करिअर शुरू किया. फिर ‘पायनिअर दैनिक’ से होते हुए ‘समाचार’ न्यूज एजेंसी में चले गए. यहाँ से काम करते-करते वे ‘ट्रिब्यून’ में काम करने लगे. यहाँ से ‘पंजाब केसरी’ में अस्सिटेंट एडिटर के पद पर तैनात हुए.फिर वे
अमर उजाला में बरेली एडिशन के चीफ बनाए गए.भास्कर के शुरूआती दिनों की बात है जब वे अमर उजाला की प्रतिष्ठित नौकरी छोड़कर दैनिक भाष्कर के भोपाल
एडिशन के प्रमुख संपादक बनाए गए. तब के दैनिक भाष्कर के सुधार और उत्थान में आपकी महती भूमिका थी.
-- अभी जिंदगी बढ़िया चाल ही रही थी की श्री रस्तोगी को लकवे का अटैक पड़ गया .. और काफी दिनों तक काम से विरत रहने के बाद ग्रुप ने इन्हे हर संभव मदद भी की और सही होने के बाद इन्हे ज्यादा काम के बोझ से अलग करने के लिए ग्वालियर एडिशन जहा काम का बोझ काम था का काम सौपा गया जिससे की श्री रस्तोगी पूरी तरह ठीक होने के बाद इन्हे फिर से जिम्मेदरिया दे दी जाएँगी लेकिन लकवे का असर इतना था की इनको ग्वालियर एडिशन से भी हटा दिया गया .. और साथ ही भास्कर ग्रुप से भी अलविदा कह दिया गया लेकिन साथ ही ये बात अच्छी थी की भास्कर ग्रुप ने इनकी जगह इनकी बेटी को नौकरी पर रख लिया और इनका जीविका के लिए भास्कर ग्रुप की ओर से जितना भी धन मिला वो इनकी पत्नी एन ले लिया और साथ ही कुछ दिनों बाद पत्नी भी भास्कर ग्रुप में जुड़ गय लेकिन वक्त कभी वक्त पर कभी बे वक्त ऐसा समय लेकर आता है की आदमी टूट जाता है .. और ऐसा ही नहीं श्री इन्द्र भूषण रस्तोगी जी के साथ इनसे नौकरी और पैसा मिलने के बाद इन्हे बेसहारो की तरह छोड़ दिया गया ..
खैर कहते है की गर आप के अन्दर हुनर है तो सब कुछ है और अपनी कमजोर शरीर और मज़बूत कलम के सहारे इन्होने फिर से कई पत्र पत्रिकाओ में काम किया लेकिन आज की भागती दौड़ती जिंदगी और अपने से अपनों के षड़यंत्र ने इन्हे कही भी टिकने नहीं दिया ..और श्री इन्द्र भूषण रस्तोगी वापस कानपुर आ गय .. और अपने पुराने माकन में रहने लगे ..
जहा भागती दौड़ती जिंदगी में धीरे धीरे ये पिछड़ते चले गय और नॉएडा में सोनाली और अनुराधा की कहानी की तरह ही श्री रस्तोगी एक गुमानम इन्सान की तरह जिंदगी बिताने को मजबूर हो गय ..
धीरे धीरे उनका घर उनके लिए काळ कोठारी बनता गया सफाई के आभाव में आज भी उस कमरे में शायद ही कोई बैठने को राज़ी हो बदबू और सीलन जैसे कमरे की तरह जैसे उनके ऊपर भी हावी हो ...छत की ओर निहारते हुए रस्तोगी जी शुन्य में खो जाते है लेकिन वो छत भी कब उनका साथ छोड़ दे कहा नहीं जा सकता उनका आवास की दुर्दसा किसी भी प्रकार के उनके व्यकितव पर नहीं फब्ती है ..रस्तोगी जी को जानने वाले जानते है की अपने पत्रकारिता के समय में रस्तोगी जी कैसे बने ठाने रहते थे और उनका व्यकित्व ही उनकी पहेचान था लेकिन आज उनकी कपड़ो की हालात और कमरे की हालात देख कर कोई ये नहीं कह सकता की ये वही रस्तोगी जी है ..
लेकिन रस्तोगी जी बस एक और अदद मौके की तलाश में है जिससे की एक बार फिर फिर वो अपनी कलम की ताकत के बल पर खडे हो सके .. उनके साथ के सह कर्मचारी आज उनसे मिलो दूर चले गय है नॉएडा में घटी घटना में सब ने ये कहा वहा की जिंदगी तो है ही ऐसी लेकिन कानपुर में भी ऐसी स्थित हो सकती है पता नहीं था अपनों से अपनों की दुरी लगातर हर शहर में बडती जा रही है ..शायद अगर कुछ दिन और इसी तरह रस्तोगी जी गुमनामो की जिंदगी जीते रहते तो उनका भी यही हाल होता जैसा की सोनाली और अनुराधा का हुआ ?..
कभी अपनों को और अपनों से छोटे और अजनबियों को भी चाय नास्ता करवाना उनकी आदत सी थी लेकिन आज उन्हे इस बात का मलाल है की अपनी आदत होने के बाबजूद भी आज वो चाय तक पिलाने में अश्मर्थ है .. लेकिन उन्होने अपने जीवन में कभी भी हार नहीं मानी..., हा ये जरुर है की वो कहते है की ये मेरी किये गय कर्मो का परिणाम है जो मैं इस स्थित में हु आज मेरे अपने इस स्थित में नहीं है की मेरी मादामदद करे क्योंकि मैने भी कभी उनका साथ छोड़ दिया था उर जिनका साथ मैने दिया आज उन्होने मेरा साथ छोड़ दिया .. आज मेरे साथ कोई नहीं है न मेरा परिवार न मेरे मित्र और न ही पत्रकारिता के मेरे साथी ...
आज भी उनको लगता है की मेरी द्वारा तैयार की गय योजनाये और खबरे पूरी न हो सकी मैं अपना पूरा काम नहीं निपटा सका .. आधी जिंदगी ही भगवान ने शायद मेरे को दी थी ...
राकेश मिश्रा जिन्होने ही श्री इन्द्र भूषण रस्तोगी जी को ढूंढ़ निकाला है का सभी से यही निवेदन है की कानपुर और देश के पत्रकारों और संपादकों से अनुरोध है की उनकी आज की स्थिति के लिए उनका संवेदनशून्य रहना मानवता के साथ नाइंसाफी होगा. आशा करता हूँ की कानपुर का मालदार प्रेस क्लब स्वयं या फिर जिलाधिकारी के विवेकाधीन कोष सहित विभिन्न मदों से इस वरिष्ठ संपादक के मान-सम्मान और प्राणों की रक्षा में आगे बढ़कर सहयोग करेगा. उनके मालिकान रह चुके पून्जीपतिओं से भी उनकी इस दशा में सहयोग की आशा करता हूँ..
श्री इन्द्र भूषण रस्तोगी
रस्तोगी के आवास का पता है:
59/20 बिरहाना रोड कानपुर-208001