आम आदमी की सुनामी
१६ वी लोकसभा चुनाव मोदी बनाम अन्य राजनितिक पार्टिया बनकर रह गया ,एन डी ए की सयोगी दलों को छोड़कर / मोदी ने जहा राजनीती से ऊपर उठकर बात की विकास की सहयोग की आम आदमी के दुःख की बाकि दलों ने राजनीती के सबसे निचले स्तर पर जा कर हमला बोला जो टाफी बिस्कुट गुब्बारे से होकर खूनी हाथो हत्यारा जैसे शब्दों के साथ लहर और अंत मे सुनामी के साथ सब बह गया /
आखिर में सवाल ये उठता है की क्या वाकई में मोदी की लहर या सुनामी थी या बी जे पी की अपनी बात थी या फिर मोदी के साथ बी जे पी या फिर दोनों का ही मिला जुला कर ये सुनामी आई थी जो सभी को बहा कर ले गई / लेकिन अगर ऐसा ही था तो सिर्फ 284 सीट ही क्यों 400 के आस पास क्यों नहीं सब को मिलाकर सिर्फ 333 सीट्स ये कोई चमत्कार नहीं है ये तो अंधे के हाथ में बटेर लगने जैसा ही है क्या वास्तव में सभी ऐसा ही सोच रहे थे या फिर कुछ लोग ही इस जादूई अकड़े के पास खड़े थे ये तो वो ही बता सकते है लेकिन इसके उलट सच्चाई कुछ और ही कहती है /
अगर राज्यवर चुनाव परिणामो को देखे तो मोदी जी गुजरात में कई सालो से है तो एम पी में शिवराज जी और राजस्थान में बी जे पी आई और कांग्रेस गई वही उत्तर प्रदेश में जहा मायावती जी पूर्ण बहूमत के साथ आती है और दूसरी बार अखिलेश जी की पूर्ण बहूमत से आ जाते है तो यहाँ पर किसकी लहर या सुनामी चली / जहा आम आदमी पार्टी और बी जे पी ने दिल्ली में कांग्रेस को हिला दिया वही बी जे पी उत्तराखंड में सरकार बनाते बनाते रह गई क्यों
कुल मिलाकर इन सभी विधान सभा और लोक सभा चुनावो में किसी पार्टी या नेता की सुनामी या लहर न होकर जनता का जागरूक होना एक अहम कारण है / कही मोदी फैक्टर या गांधी फैक्टर या कही और दीदी या बहन जी का फैक्टर काम नहीं करता बल्कि जनता जिस दिन एक साथ बदलाव की सोच लेती है उस दिन उस पार्टी का फैक्टर अपने आप चल जाता है / जिसका जीता जगता उदाहरण है आम आदमी पार्टी जिसको जनता ने जहा सर का ताज़ बना कर सर आँखों पर रखा अब उसको अपने पैरो के पास भी स्थान नहीं दे रही है /
उत्तर प्रदेश में जहा मायावती पूर्ण बहुमत से आती है और सबको आश्चर्य चकित कर देती है लेकिन दुसरे चुनाव में फिर से जनता उनको आश्चर्य चकित कर देती है और समाज वादी पार्टी को पूर्ण बहुमत से ले आती है अब समजवादी पार्टी को लेकर सभी आश्चर्य चकित थे लेकिन लोक सभा चुनाव में जनता उन्हे फिर से आश्चर्यचकित कर देती है / क्या शराब और रूपये बाटने व लैपटॉप ,बेरोजगारी भत्ता ,और मुफ्त की दवाईया और आवास देने से से वोट मिलने लगते है और सरकार बनने लगती है तो उत्त्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी एक बढ़िया उदाहरण है जो जीत कर भी हार गई /
आखिर सवाल फिर से वही है की क्या कारन है की जो राजनितिक पार्टिया और राजनीती की गहरी जानकारी रखने वाले ऐसे परिणाम आने पर सोचने पर मजबूर हो जाते है / इन सब सवालो का जवाब जनता के ही पास है जनता यानि आम आदमी जो सभी पार्टियो के रोड शो और रैलियों में बराबर से खड़े नज़र आते है लेकिन परिंणाम आने के बाद एक दम अलग खड़ी दिखाई पड़ती है /
आप अपने आप को अपनी पार्टी को उचा उठा कर बताओ चाहे जितनी उपलब्धिया गिनाओ लेकिन आज के आम आदमी को बेवकूफ बनाना मुश्किल ही नहीं नामुनकिन भी है / इसका मुख्य कारण सूचना और संचार तंत्र का आम आदमी तक पहुंच जाना और उसके ऊपर भी रामदेव , अरविन्द केजरीवाल और अन्ना जैसे लोगो के द्वारा इस आम आदमी को अक्ल दे जाना जो बाद में शायद इनके लिए ही मुसीबत बन जाए लेकिन फिर भी जनता तो जाग गई न ! अब जनता आप के चुनावी भाषण और उपलब्धिया सुनती ही नहीं बल्कि वास्तिविक आकड़ो पर गौर भी फरमाती है /
लेकिन एक कमी को देखकर दुःख भी होता है की अगर इस काम में समाज का चौथा खम्भा भी बराबर से निष्पक्छ तरीके से साथ दे तो शायद तस्वीर कुछ और ही होती / लेकिन पता नहीं क्यों आज का मीडिया हाउस ज्यादातर पार्टियो के हाथो में है या यो कहे की इनके मालिक आज के नेता ,नेता के साथ ही साथ मीडिया हाउस के मालिक और साझेदार भी है ,जो एक बड़ी वजह है मीडिया का जनता के साथ खड़े न हो पाना ,वो हवा के रुख (पैसो के रुख ) और रसूख के साथ खड़ी नज़र आती है /
कुल मिलाकर कोई भी नेता और राजनितिक पार्टिया चाहे करोडो रुपया क्यों न बर्बाद कर दे ,उनकी जीत कभी भी सुनिश्चित नहीं हो सकती है सुनिश्चित तभी हो सकती है जब नेता और राजनीतक पार्टिया जनता से सीधे सम्बंध स्थापीत नहीं करते / जनता ने किसी राजनितिक पार्टी या नेता को वोट न देकर उन्होने विकास और रोजगार सस्ती वस्तुए को दिया था अपने शहर को विकसित और व्यवस्थित करने की जिम्मेदारी आपको दी थी लेकिन आपने अपनी जिम्मेदारियों से मुह मोड़ लिया तो जनता ने भी तो आप से मुह ही तो मोड़ा है ये जनता की सुनामी में बह गए सब /
लेकिन वक़्त अभी भी है यू पी में समाज वादी पार्टी को वापसी करनी है 2017 में और बी जे पी को 2019 में ऐसे ही राजस्थान मद्य प्रदेश उत्तराखंड और बाकि राज्यों में अलग अलग पार्टियो को / नेता और राजनितिक पार्टिया अपनी पार्टी में चाहे जीतने फेर बदल कर ले जब तक फाइलो से और घोषणा पत्रो से निकल कर विकास हकीकत में नहीं नज़र आएगा तब तक कुछ भी नहीं होने वाला /
आखिर में सवाल ये उठता है की क्या वाकई में मोदी की लहर या सुनामी थी या बी जे पी की अपनी बात थी या फिर मोदी के साथ बी जे पी या फिर दोनों का ही मिला जुला कर ये सुनामी आई थी जो सभी को बहा कर ले गई / लेकिन अगर ऐसा ही था तो सिर्फ 284 सीट ही क्यों 400 के आस पास क्यों नहीं सब को मिलाकर सिर्फ 333 सीट्स ये कोई चमत्कार नहीं है ये तो अंधे के हाथ में बटेर लगने जैसा ही है क्या वास्तव में सभी ऐसा ही सोच रहे थे या फिर कुछ लोग ही इस जादूई अकड़े के पास खड़े थे ये तो वो ही बता सकते है लेकिन इसके उलट सच्चाई कुछ और ही कहती है /
अगर राज्यवर चुनाव परिणामो को देखे तो मोदी जी गुजरात में कई सालो से है तो एम पी में शिवराज जी और राजस्थान में बी जे पी आई और कांग्रेस गई वही उत्तर प्रदेश में जहा मायावती जी पूर्ण बहूमत के साथ आती है और दूसरी बार अखिलेश जी की पूर्ण बहूमत से आ जाते है तो यहाँ पर किसकी लहर या सुनामी चली / जहा आम आदमी पार्टी और बी जे पी ने दिल्ली में कांग्रेस को हिला दिया वही बी जे पी उत्तराखंड में सरकार बनाते बनाते रह गई क्यों
कुल मिलाकर इन सभी विधान सभा और लोक सभा चुनावो में किसी पार्टी या नेता की सुनामी या लहर न होकर जनता का जागरूक होना एक अहम कारण है / कही मोदी फैक्टर या गांधी फैक्टर या कही और दीदी या बहन जी का फैक्टर काम नहीं करता बल्कि जनता जिस दिन एक साथ बदलाव की सोच लेती है उस दिन उस पार्टी का फैक्टर अपने आप चल जाता है / जिसका जीता जगता उदाहरण है आम आदमी पार्टी जिसको जनता ने जहा सर का ताज़ बना कर सर आँखों पर रखा अब उसको अपने पैरो के पास भी स्थान नहीं दे रही है /
उत्तर प्रदेश में जहा मायावती पूर्ण बहुमत से आती है और सबको आश्चर्य चकित कर देती है लेकिन दुसरे चुनाव में फिर से जनता उनको आश्चर्य चकित कर देती है और समाज वादी पार्टी को पूर्ण बहुमत से ले आती है अब समजवादी पार्टी को लेकर सभी आश्चर्य चकित थे लेकिन लोक सभा चुनाव में जनता उन्हे फिर से आश्चर्यचकित कर देती है / क्या शराब और रूपये बाटने व लैपटॉप ,बेरोजगारी भत्ता ,और मुफ्त की दवाईया और आवास देने से से वोट मिलने लगते है और सरकार बनने लगती है तो उत्त्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी एक बढ़िया उदाहरण है जो जीत कर भी हार गई /
आखिर सवाल फिर से वही है की क्या कारन है की जो राजनितिक पार्टिया और राजनीती की गहरी जानकारी रखने वाले ऐसे परिणाम आने पर सोचने पर मजबूर हो जाते है / इन सब सवालो का जवाब जनता के ही पास है जनता यानि आम आदमी जो सभी पार्टियो के रोड शो और रैलियों में बराबर से खड़े नज़र आते है लेकिन परिंणाम आने के बाद एक दम अलग खड़ी दिखाई पड़ती है /
आप अपने आप को अपनी पार्टी को उचा उठा कर बताओ चाहे जितनी उपलब्धिया गिनाओ लेकिन आज के आम आदमी को बेवकूफ बनाना मुश्किल ही नहीं नामुनकिन भी है / इसका मुख्य कारण सूचना और संचार तंत्र का आम आदमी तक पहुंच जाना और उसके ऊपर भी रामदेव , अरविन्द केजरीवाल और अन्ना जैसे लोगो के द्वारा इस आम आदमी को अक्ल दे जाना जो बाद में शायद इनके लिए ही मुसीबत बन जाए लेकिन फिर भी जनता तो जाग गई न ! अब जनता आप के चुनावी भाषण और उपलब्धिया सुनती ही नहीं बल्कि वास्तिविक आकड़ो पर गौर भी फरमाती है /
लेकिन एक कमी को देखकर दुःख भी होता है की अगर इस काम में समाज का चौथा खम्भा भी बराबर से निष्पक्छ तरीके से साथ दे तो शायद तस्वीर कुछ और ही होती / लेकिन पता नहीं क्यों आज का मीडिया हाउस ज्यादातर पार्टियो के हाथो में है या यो कहे की इनके मालिक आज के नेता ,नेता के साथ ही साथ मीडिया हाउस के मालिक और साझेदार भी है ,जो एक बड़ी वजह है मीडिया का जनता के साथ खड़े न हो पाना ,वो हवा के रुख (पैसो के रुख ) और रसूख के साथ खड़ी नज़र आती है /
कुल मिलाकर कोई भी नेता और राजनितिक पार्टिया चाहे करोडो रुपया क्यों न बर्बाद कर दे ,उनकी जीत कभी भी सुनिश्चित नहीं हो सकती है सुनिश्चित तभी हो सकती है जब नेता और राजनीतक पार्टिया जनता से सीधे सम्बंध स्थापीत नहीं करते / जनता ने किसी राजनितिक पार्टी या नेता को वोट न देकर उन्होने विकास और रोजगार सस्ती वस्तुए को दिया था अपने शहर को विकसित और व्यवस्थित करने की जिम्मेदारी आपको दी थी लेकिन आपने अपनी जिम्मेदारियों से मुह मोड़ लिया तो जनता ने भी तो आप से मुह ही तो मोड़ा है ये जनता की सुनामी में बह गए सब /
लेकिन वक़्त अभी भी है यू पी में समाज वादी पार्टी को वापसी करनी है 2017 में और बी जे पी को 2019 में ऐसे ही राजस्थान मद्य प्रदेश उत्तराखंड और बाकि राज्यों में अलग अलग पार्टियो को / नेता और राजनितिक पार्टिया अपनी पार्टी में चाहे जीतने फेर बदल कर ले जब तक फाइलो से और घोषणा पत्रो से निकल कर विकास हकीकत में नहीं नज़र आएगा तब तक कुछ भी नहीं होने वाला /