Tuesday, September 10, 2013

क्यों पूज्यनीय है गणपति प्रथम ?

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क्यों पूज्यनीय है गणपति प्रथम ?
भगवान गणेश सनातनधर्म में प्रथम पूज्यनीय बताय गय है हम सभी अपने सभी शुभ कार्यो से पहले भगवान  गणेश का पूजन करते है पुराणों में इस सम्बन्ध में कई कथाएई वर्णित है जिनमे से एक है कुछ इस प्रकार :-  
पुराणों में गणेश को शिव-शक्ति का पुत्र बताया गया है। शिवपुराण की कथा में है कि माता पार्वती ने अपनी देह की उबटन से एक पुतले का निर्माण किया और उसमें प्राण फूंककर अपना पुत्र बना दिया। इस पुत्र के हाथ में एक छड़ी जैसा अस्त्र देकर मां ने उसे अपना द्वारपाल बना दिया।

उनकी आज्ञा का पालन करते हुए बालक ने भगवान शंकर को घर में प्रवेश नहीं करने दिया। तब शिवजी ने अपने त्रिशूल से उसका मस्तक काट दिया। बाद में बालक गजमुख हो गया।

पुत्र की दुर्दशा से क्रुद्ध जगदंबा को शांत करने के लिए जब देवगणों ने प्रार्थना की,तब माता पार्वती ने कहा-ऐसा तभी संभव है,जब मेरे पुत्र को समस्त देवताओं के मध्य पूज्यनीय माना जाए।

शिव जी ने उन्हें वरदान दिया-जो तुम्हारी पूजा करेगा,उसके सारे कार्य सिद्ध होंगे।ब्रह्मा-विष्णु-महेश ने कहा-पहले गणेश की पूजा करें,तत्पश्चात् ही हमारा पूजन करें।इस प्रकार गणेश बन गएगणाध्यक्षगणपतिका मतलब भी है देवताओं में सर्वोपरि।
मेरा कहना है कि जो भी कथाए  प्रचिलित है या जो भी जिस भी कथा पर विश्वास करता  है वो बहस का मुद्दा न होकर मुद्दा ये होना चाहिए  कि सभी कथाओ  से हमे  क्या शिक्षा मिलती है कि हमे पुराणों में लिखी गई बात से सन्देश क्या मिलता है हम सालो से सिर्फ यही तो करते आ रहे है  गणेश को ही प्रतेक शुभ कर्म के पहले पूजते है फिर सभी देवी देवताओ  कि पूजा , क्यों क्या कभी सोचा  नहीं क्योंकि सालो से जो हुआ  पड़ा जो देखा  वही किया न कि अपना  दिमाग प्रयोग किया ?
भगवान गणेश समाज के एक ऐसे  चरित्र को प्रदर्शित करते है जो विकृत है जो शारीरिक रूप से विकृत है/ वो (इन्सान ) जिसको इस प्रथ्वी में  श्रष्टि के रचियता ने विकृत बना दिया आधुनिक युग कि बात करे तो हारमोंस और गुण सूत्रों   के कारण कोई बच्चा विकृत पैदा हो जाता है / भगवान शिव और माँ पार्वती ने समाज को गणेश रूप में ये सन्देश दिया कि जो समाज में शारीरिक रूप से विकृत है उसे पूजे यानि  अपने सभी शुभ कार्यो में उसे पहले पूछे / उसको बार बार यह अहसास न दे  कि वो विकृत है वो सबके जैसा नहीं है उसको दुःख पहुचेगा आपके शुभ कार्यो में जब सभी घर के सदस्य खुश होंगे तो घर का ही एक सदस्य दुखी होगा जो शारीरिक रूप से विकृत होगा क्या यह ख़ुशी पुरे  परिवार कि ख़ुशी होगी नहीं यह आप खुद जानते है /क्या उसे जिसके लिए वो खुद जिम्मेदार नहीं है उसकी सजा उसको जीवन भर आप सभी कामो में पीछे कर के देते रहेंगे और आपकी सभी खुशिया अधूरी रह जाएँगी /अगर अपने उस विकृत भाई बहन बेटी या बेटे को हम अपने  सभी कामो में पहले पूछते है को उसका मन अंदर से ज्याद ख़ुशी महसूस करेगा और उसके दिल से अपने घर के लिए भी अच्छी प्राथना ही निकलेगी न कि दुखी मन से अच्छी प्राथना नहीं निकलेगी / लेकिन उसको जो विकृत है शारीर से उसको अगर हम अपनी खुशियों में बराबर का हिस्सा देते है तो हम हमेशा खुश रहेंगे / वो खुशिया हमे आगे  बढने  में मदद करेंगे /
एक सवाल यह भी है कि भगवान गणेश और उनकी सवारी मूषक से लोग  हजारो मुरादे मांगते है कि मेरा ये काम हो जाय आदि आदि /लेकिन अगर गणपति अगर अपने वास्तविक स्वरुप में खुद उनके घर में पुत्र रूप में जन्म ले ले तो उन्हे हम कितने दिन प्यार करेंगे या पूजेंगे  एक दिन दो दिन या फिर एक माह शायद इससे ज्यादा नहीं फिर वो हमारे लिए बोझ हो जायेंगे / उनको तब कोई पसंद नहीं करेगा सभी हसेंगे / और कितनी ही लडकिया उनसे शादी के लिए तैयार हो जाएँगी एक भी नहीं / अरे जब गणपति आपके साथ है तब आपको बोझ लगने लगते है आप  उन्हे पसंद नहीं करते है और जब गणपति नहीं होते है वो मूर्ति के रूप में होते है तो हम पत्थर को पूजते है प्रसाद चडाते है वहा प्रभु  तेरी माया ! गणपति यानि अगर घर में कोई लड़का या लड़की विकृत रूप में पैदा होता या होती है तो उसे स्वीकार करना हमे कठिन हो जाता है /
 भगवान को मंदिरों में ढूँढने वाले भक्त भगवान भगवान हमारे आस पास ही है बस नजरे तो खोलो अन्धो के पीछे आँख में पट्टी बांध कर मत चलो /इस समाज में एक विकृत रूप है जो न पुरुष है और न जो स्त्री है जो किन्नर है जो हिजड़ा है उसे  समाज में क्या दर्ज़ा प्राप्त है सभी जानते है लेकिन हमारे  सभी शुभ कार्यो में वो आते है और हमें आशीर्वाद  दे कर जाते है   जो समाज  में विकृत है शारीरिक  रूप से /और समाज के मानसिक रूप से /इन किन्नरों कि दुआ सच होती है और बददुआ भी  /
सिर्फ भारत में ही हजारो कि संख्या में संत और धर्मगुरु प्रवचन  देते है और न जाने कितने टी वी  चैनल में पत्र पत्रिकाओ में फिर भी लोगो में अज्ञान फैला हुआ है क्यों क्या सही ज्ञान नहीं दिया जा रहा है शायद इसलिए /
इस बात को इसे भी समझा जा सकता है कि हम बचपन से लेकर बुडापे  तक नाई  कि दुकान पर जाते है बाल कटवाते है फिर बदते है फिर कटवाते है फिर ये क्रम चलता रहता है और नाई कि दुकान भी चलती रहती है न ही हम ये पूछते है कि कोई उपाय जो बाल बडे ही न नहीं वो बताता है , वो बताता इसलिए नहीं है कि उसको पता नहीं होता है और हमारे द्वारा किया गया प्रशन मूर्खो कि श्रेणी में आ जाता है /
हम अगर ईश्वर  है कि नहीं है ये पूछे धर्म  गुरु से तो वो मुर्ख अज्ञानी बताते है और शायद उन्हे  भी नहीं पता कि भगवान है कि नहीं ...............इसलिए ही  गणपति प्रथम  पूजनीय है  /

Posted By KanpurpatrikaTuesday, September 10, 2013

Friday, September 6, 2013

जाने अर्धनारेश्वर शिव चित्र के बारे में




जाने अर्धनारेश्वर शिव चित्र के बारे में
अर्धनारेश्वर शिव चित्र मतलब आधे शिव और आधी पार्वती जी का चित्र जो हम सभी ने देखा और सुना | सभी पूजते है इस चित्र को सनातन  धर्मं  में | लेकिन क्या कभी जानने कि कोशिश कि क्या ये चित्र भी हमे कुछ बताता है ?
 सनातन  धर्मं  में एक भी चित्र से लेकर वेद  पुराण  तक सभी में ज्ञान है हमारे  जीवन को चलाने के लिए बस बात है समझने कि और समझाने कि कैसे पता चले उस ज्ञान के बारे में जो हमें हमारे शरीर को स्वस्थ रखे |
अब जानते है अर्धनारेश्वर चित्र के दाहिने और माँ पार्वती के चित्र से....
माँ पार्वती स्त्री का प्रतिनिधित्व कर रही है स्त्री जो पूजनीय है जो प्रथम है जो जननी है
माँ पार्वती का आधा भाग यह दर्शाता है कि जीवन में पहले एक स्त्री के गुणों को जीवन में अमल में लाना चाहिये  और उसके बाद पुरुष  के चरित्र और गुणों को ...
स्त्री के मस्तिष्क :- स्त्री के गुणों का अनुसरण करने से तात्पर्य यह है कि एक स्त्री जो जननी है जो पली और बड़ी हुई किसी और घर में और अपने जीवन का आधे से ज्यादा समय किसी और के यहाँ बिता देती है और अपने  मस्तिष्क के अनुरूप काम लेकर उस घर में अपने को ढाल लेती है जैसा वहा का वातावरण होता है |
अगर हम भी यानि सभी अपने जीवन में कभी  अनजानी और अपरचित जगह जाते है तो एक स्त्री के मष्तिष्क कि तरह काम लेकर वहा के अनुरूप ढल जाय | ताकि हम उस वातावरण में रहकर कार्य कर सके |
स्त्री के नेत्र कि तरह :- एक स्त्री के नेत्र विषम परिस्थितयों में ही क्रोध से भरे दिखाई देते है नहीं तो एक स्त्री हमेशा प्रेम स्नेह और ममतापूर्ण नेत्रों से देखती है दयालुता सम्मान उसके नेत्रों में दिखाई पड़ती है  | तो हमे भी अपने जीवन में स्त्री नेत्रों कि तरह ही प्यार और सम्मान से लोगो को देखना चाहिए |
स्त्री के कान :- एक स्त्री ससुराल में अपने कानो से सब कुछ सुनकर वहा पर सामंजस्य बनाकर रखती है | स्त्री के कान सब कुछ सुन कर भी सहन करने कि क्षमता रखते है विशेष परिस्थितियों में ही उसे बोलने कि जरुरत पड़ती है | तो हमे भी सर्व प्रथम अपने  कानो को स्त्री के कानो कि तरह ही इस्तेमाल  करना चाहिए |
स्त्री मुख :- स्त्री मुख से निकलने वाले बोल भी कोमल और स्नेह से भरे होते है ,कभी भी असहज लगने वाले सब्दो का प्रयोग नहीं करती है स्त्रिया | इसलिए  हमे भी अपने मुख से क्रोधी और असहज  लगने वालो शब्दों का प्रयोग न करना स्त्री मुख से सीखना चाहिए या उनका अनुसरण करना चाहिए |
अगर हम क्रोधित होते  है को कई लोग क्रोधित होते है और क्रोध नाश का कारण होता है और मुख ही शुभ और अशुभ संकेत दे जाता है |
स्त्री ह्रदय :- स्त्री का ह्रदय कोमल दया से भरा प्यार और स्नेह  लिए हुए होता है ईर्ष्या  और बदले कि भावना उसके दिल में नहीं होती है वो तो परोपकारी  ह्रदय कि स्वामी होती है जिसको देना आता है | माँ बहन पत्नी और बेटी इसका उदाहरण है हमे भी जीवन में पहले स्त्री ह्रदय से काम लेना चाहिए |
स्त्री के हाथ और पैर  :- स्त्री के हाथ और पैर  हमेशा दूसरो कि मदद और सेवा के लिए उठते है जिनमे स्वार्थ और बदले कि भावना तनिक भी नहीं होती है हमे भी अपने हाथ और पैर में स्त्री के हाथ और पैर  के गुण रखने चाहिए |
इन स्त्री गुणों को हमे अपने जीवन मे पहले अपनाना चाहिए जिसके बाद शिव यानि पुरुष गुणों को जीवन में लाना चाहिए |
चित्र के बाई और शिव स्वरुप ईश्वर  यानि पुरुष कर प्रतिनिधित्व कर रहे है | जो जीवन में स्त्री आचरण के बाद पुरुष आचरण को लाने का सन्देश देते है |
पुरुष का मष्तिष्क :- पुरुष मष्तिष्क तीव्र गति से सोचने वाला तीव्र निर्णय लेने वाला और समय और परिस्थित के अनुसार व्यवहार करने वाला होता है अतः हमे पुरुष मष्तिष्क का अनुसरण स्त्री मस्तिष्क के उपरांत करना चाहिए |
पुरुष नेत्र :-पुरुष नेत्रों में कठोरता क्रोध ज्यादा और  भावुकता कम ही होती है | अतः हमे समय और परिस्थित के अनुसार पुरुष नेत्रों का इस्तेमाल करना चाहिए |
पुरुष कान :- पुरुषो के कान  ज्यादा गंभीर और ज्यादा देर तक सहन नहीं कर सकते है | अतः हमे समय और परिस्थित के अनुसार पुरुष कानो का इस्तेमाल करना चाहिए |
पुरुष मुख :-स्त्री मुख कि अपेक्षा पुरुष मुख से कोमल व स्नेही शब्द कम ही निकलते है अतः हमे समय और परिस्थित के अनुसार पुरुष मुख का इस्तेमाल  करना चाहिए |
पुरुष ह्रदय :- पुरुष  ह्रदय कठोर होता है उसमे स्त्री ह्रदय कि तरह भावना  कम होती है | यहाँ पर भी हमे समय और परिस्थित के अनुसार पुरुष ह्रदय को अपना लेना चाहिए |
पुरुष के हाथ और पैर :- पुरुष के हाथ बलशाली और पैर तीव्र गति लिए होते है जो जरूरत पडने पर हमेशा  मजबूती प्रदान करते है अतः स्त्री के हाथ और पैरो के गुणों के बाद आवश्यकता पडने पर पुरुष के  हाथ और पैरो कि तरह ही आचरण करना चाहिए |
भगवन शिव  जिनका प्रतिनिधित्व कर रहे है  जो पालनकर्ता है जो विघ्नहर्ता है जो कर्ता  है | उनका अनुसरण करना चाहिए |

पंडित आशीष त्रिपाठी 
ज्योतिषाचार्य 

Posted By KanpurpatrikaFriday, September 06, 2013

Wednesday, September 4, 2013

जीत जायेंगे हम The Winning Spirit

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जीत जायेंगे हम The Winning Spirit


जीवन में सफलता और असफलता हमेशा आते है कोई सफल होकर असफल होता है तो कोई असफल होकर सफल होता है / सफलता और असफलता प्रायः आशा ख़ुशी और सकारात्मक सोच लेकर आते है वही असफलता निराशा दुःख और नकारात्मक सोच को लेकर आते है / हमेशा असफलता से सभी डर जाते है नकारत्मक सोच हावी होने  लगती है आस पास का माहौल भी अनुकूल नहीं लगता है / हम सबसे दूर जा रहे होते है कोई हमे समझ ही नहीं पा रहा है और न ही समझना चाहता है / ऐसे में क्या करे और क्या न करे समझ में भी नहीं आता है अक्सर  गुस्सा आना चिड चिड़ापण बात बात में गुस्सा आना / ऐसे में कुछ लोग करवाने ( तंत्र मंत्र और दुआ ताबिज़ जैसे चक्कर में फसकर समय और पैसा बर्बाद करके और नकारत्मक सोच से घिर जाते है / और ऐसे समय में अगर कोई उन्हे सबसे बुरा लगता है तो वो है ईश्वर जो सब कुछ देखते हुए भी चुप रहता है / मैं कितना परेशां हु क्या उस ईश्वर  को नहीं दिख रह है / पंडितो द्वारा बताई गई  चीजे भी कि लेकिन उनका भी कोई फायदा नहीं क्या मेरी किस्मत  ही ख़राब  है क्या मैं वाकई में कुछ नहीं कर सकता हु /
ऐसे में ज्यादा नकारत्मक सोच बढने से हम आत्माहत्या कि और बढने लगते है और ज्यादातर लोग जिंदगी कि जगह मौत चुनते है / क्या ये रास्ता सही है ? क्या हम वास्तव में हार  जाते है क्या कारण है कि हम लाख कोशिश के बाद भी असफल हो  रहे है /
क्या जब हम असफल होते है तब हमे कुछ नहीं मिलता हर तरफ नाकामी होती है ? हम शून्य हो जाते है ? शून्य  पर आकार खडे हो जाते है ?हमे कुछ नहीं मिला ऐसा हम सोचते है ?
लेकिन ऐसा नहीं होता है हमे हर पल कुछ न कुछ मिलता रहता है लेकिन हम उन नकारात्मक सोच के कारण उन चीजों कि और ध्यान ही नहीं दे पाते है जो हमे असफलता के दिनों में मिलती है जो हमारी जिंदगी के महवपूर्ण दिन होते है / ”The Golden Period of Our Life is our Unsucsess Time” जब हम असफलता कि सीढ़िया चढ़ रहे होते है /
हर एक इन्सान जो आपके साथ उठता था बैठता था आपसे बात करता था आपके असफल होने के बाद से आप के पास बैठना पसंद नहीं करता उसके पास आपके पास बैठने के लिए टाइम नहीं है
आपकी बुराई चालू कर देते है /
आपकी हा में हा मिलने वाले अब आपसे बात नहीं करते क्यों कि आप कुछ नहीं है /
आपके अपने आप को निकम्मा कहते है /
क्या आप अपने आप को और अपनी क्सिमत को ख़राब मानते है /
अगर ये सही है तो आप असफल व्यक्ति कि लाइन में खडे है और आप उस लाइन  से आगे निकल कर दोबारा देखे  कि आप क्या देख पा रहे है .........
जो आप के पास बैठते थे आप से बाते करते थे आपकी हा में हा मिलते थे वो आज आपके पास नहीं आते है आप से दूर जा रहे है आपकी बुराई कर रहे है उनके पास आपके लिए समय नहीं है क्योंकि आप फेल हो चुके है /
जो आपके साथ उस समय नहीं है जब आपको उनकी जरुरत थी जब आप समस्या में थे जब आपको सही सलाह कि जरुरत थी तो आपके अपने न हो कर वो आपके सच्ये दोस्त न होकर और वो आपसे नहीं आपके पद आपके पैसो और आपसे मतलब के कारण जुडे थे ऐसे लोग असफलता के आने पर साफ नज़र आ जाते है / ये सर्फ असफलता ही दिखा  सकती है सफलता के दिनों में आप् किसी को भी नहीं पहचान  पायेंगे /
हो सकता यही लोग उस समय जब आप मुसीबत  में होते हौर बुलाते तब न आते तब लेकिन आज असफल होने के बाद ये तो मालूम पड़ गया कि ये इन्सान तो कभी  समस्या में काम आने वाला नहीं है ये है असफलता के दिनों में मिलने वाली चीजे जो हम देख नहीं पते / आप कुछ नहीं है आप असफल है आप डूबते हुए  सूर्य है / तो हा मैं हु क्योंकि  सूर्य डूबते समय भी उतना बड़ा होता है जितना बड़ा  वो उगते समय होता है / सूर्य डूबते समय भी उस रंग का होता है जिस रंग का उदय होते समय होता है / तो  मैं आज अगर डूब रहा हूँ तो मैं उग रहा हूँ मैं वैसा हु जैसा पहली बार काम  करने गया था और मेरा साथ किसी ने नहीं दिया था मैने खुद मुसीबतों से लड़कर सीखा और आज फिर मैं वैसा ही हु और फिर मैं उगूंगा और पूरा सूर्य जैसे उजाला फैलाता है मैं भी फैलाऊंगा अंधरे में मुझे कौन उजाला दिखाता है ये देखना है या मुझे अंधेरे में छोड़ जाते है जो सो सच के साथ नहीं है / और अँधेरे में वो ही जाते है जिन्हे उजाला खोजना होता है /
फिर भी मान लिजिए कि असफलता के दिनों में कुछ न मिला तो शुन्य तो मिला शुन्य यानि जीरो यानि गोल यानि प्रथ्वी जो गोल है उसमे बसने वाले गोल मोल लोगो तो दिखे / दूसरा शुन्य मिला तो कुछ तो मिला अब ये हमारें ऊपर है कि शुन्य  को हा कैसे यूज़ करते है 1 के साथ 2 के साथ या 9 के साथ ........ जो 10 20 90 बना सकता है फिर हम जीरो को कितनी बार यूज़ करते है 100 1000 100000 ये हमारें ऊपर है /
पंडित के दिए मंत्र दुआ और पहना गय ताबीज भी असफलता के दिनों में काम नहीं आता ,इससे ये मालूम पड़ता है कि ये कि अंधविश्वास से दूर रहो जो आपके बुरे वक्त को सही नहीं कर सका वो क्या कर पायेगा /
असफलता  के दिनों में भी सकरात्मक सोच बनाय रखे आप अपने ईश्वर खुद बने आप अपने आप को खुद देखे कि आप ने क्या किया असफल होने  के पहले कि असफल क्यों हुए /
ईश्वर ने हमारे शारीर में दो हाथ दो पैर दो आंख दो कान दिए है /जो क्रमशः दाहिने और बाएँ और होते है /
दांया ----------Right...........सीधा..........सही
बांया..............Left..............उल्टा........गलत
यही जीवन का सूत्र है हमारी सोच और हमारे आस पास वालो कि सोच यहाँ तक ही जाती है कि आप का सीधे हाथ से ही काम कर सकते है और जो दिख रहा है अगर आपने कोशिश करके भी लेफ्ट हैण्ड से लिखा है तो भी उन्हे राईट हैण्ड से लिखा ही दिखेगा / मतलब इसका ये है कि अगर हम जो सही कर  रहे है जो हम सामने से दिख रहे है वही लोगो को दिखाई पड़ता है हम पीठ के पीछे यानि छुप कर क्या करते है ये किसी को नहीं मालूम होता है जो लेफ्ट हैण्ड करता है जो उल्टा है हमारे चरित्र का जो गलत है /
अब असफलता के दिनों में अपने  उन पालो को याद करे जो समय अपने अकेले बिताया जिसके बारे  में आप और सिर्फ आप ही जानते है आप के वो काम जो सिर्फ आप ने किये जिनको आप ही जानते है सोचे क्या वो चीजे आपने किसी को बताई नहीं क्यों क्योंकि वो गलत थी / उन पालो को जो अपने गलत बिताया याद करे मज़ा आयेगा और असफल क्यों हुए पता लगेगा / जब भी  हम असफल होने बाद  सफलता वाले दिनों में जी रहे होते है तो हमे अपने वो पल याद करने चाहिए जब हम असफल थे तब महसूस होगा जब इतनी मुसीबत और कठनाई के दिनों में हौसला बनाए रखा तो ये क्या दिन है अब तो सब कुछ हमारे अनूकुल है अब तो जीत जायेंगे हम हम अगर साथ है /
 मतलब  अपना साथ हमे खुद अपने आप को देना है अपना ईश्वर हमे खुद बनाना है / हम ही अपनी किश्मत और अपने असफलता को सफलता में बदल सकते है /
जीत जायंगे हम अगर हम साथ है
जिंदगी हर पल एक नई सोच है
जिंदगी हर पल एक नई खोज है
लड़ेंगे हम भिड़ेंगे हम असफलताओ से
जीतेंगे हम जितना है हमे
जीत जायंगे हम अगर हम साथ है



Posted By KanpurpatrikaWednesday, September 04, 2013