आज मैं फिर नशे में हु
कभी ख़ुशी के नशे में तो
कभी मौत के नशे में
कभी महंगाई से परेशान लोगो के नशे में
कभी कोयला कभी स्पेक्ट्रम घोटालो के नशे में
कभी रामदेव के नशे तो कभी अन्ना के नशे में
दोस्तों आज मैं फिर नशे में हु
कभी दर्द से तडपती माँ के दुःख के नशे में
तो कभी भूख से तडपते बच्चे की भूख के नशे में
कभी गीतिका कभी अरुशी कभी दिव्या के हालात के नशे में
तो कभी कविता मधुमिता और कभी फिजा के मौत के नशे में हु
आज मैं फिर नशे में हु
कभी अपने दुःख के नशे में
सोचता हु की मैं ज्यादा नशे में हु
कभी दूसरो को दुखी देखकर उनके नशे में हु
कभी ईश्वर के नशे में हु तो कभी पंडितो के नशे में हु
कभी मौला कभी तांत्रिक कभी मजार के नशे में हु
आज मैं फिर नशे में हु
सोचता हु आज सच में नशे में हो जाऊ
लेकिन उस नशे का नशा उतरता ही नहीं
मैं कैसे उस नशे में खो जाऊ
जिसमे नशा है ही नहीं