हमारे देश में चुनावो की घोषणा होते ही सभी क्षेत्रिय वा राष्ट्रीय पार्टिया अपने अपने वादों की लिस्ट बनाती है / कहने को तो ये लिस्ट जनता के लिए होती है लेकिन इससे सबसे ज्यादा फायदा किये गए व्यदो का सिर्फ और सिर्फ नेताओ को ही होता है / सभी पार्टिया एक मेले में लगने वाले स्टालों की तरह ही चुनावी मेले में अपने वादों के स्टाल लगाती है और लुभावने आफर देती है , आम जनता गरीब जनता भोली भाली जनता इस देश की,हमेशा की तरह फ्री सैम्पल और एक के साथ एक फ्री वाले स्टालों पर ज्यादा भीड़ लगा देती है / ऐसे में पार्टिया भी उनकी शक्ल व सूरत देखकर ( शक्ल का अर्थ यहाँ जाती और संप्रदाय से है ) उनके हिसाब से ही वायदे करते है मौजूदा समय में हुए उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में भी यही हाल रहा , सभी ने वायदे किये लुभावने आफर दिए लेकिन सबसे ज्यादा भीड़ एक पार्टी के स्टाल पर हुई और जनता ने हमेशा की तरह ही उस स्टाल (पार्टी) पर ही भीड़ (मोहर ) लगा दी / जहा सबसे ज्यादा आफर या फिर यु कहे की वायदे किये गए थे /अब देखना ये है की स्क्रेच और विन की तरह ही हॉल न हो जैसा की हमेशा होता है की कुछ को फायदा उठा ले जाते है और बाकि हाथ मलते रह जाते है /अब बेरोगारी भत्ते की ही बात ले लीजिये जिसमे चुनाव से पहले तो वायदा किया गया लेकिन चुनाव के बाद टर्म एंड कंडीशन लागू कर दी गई
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कुल मिलाकर मुद्दा ये है की पार्टिया जनता से वायदे करती है और फिर दगा बाज़ी भी कर जाती है किये गए वायदे अभी तक कितनी बार पूरे हुए है जनता खुद इसका जवाब जानती है /और गर पुरे होते भी है तो ठीक उसी तरह ही जैसे किसी मल्टीनेशनल कंपनी जिसको अंत के माह में अपना टार्गेट पूरा करने के लिए कई तरह की आफर देने पड़ते है और प्रचार प्रसार करना पड़ता है /ठीक इसी प्रकार राजनितिक पार्टिया अपने कार्यकाल के अंतिम समय में उन योजनाओ को लागू कर देते है जो उन्होने चुनाव से पहले किये थे / एक बात ये भी है की पार्टियों को अपनी पहुच भी मालूम होती है की वो कितनी सीट निकाल सकती है और सरकार बना सकती है और इसी फेर में वो वायदे कर देती है की हमारी सरकार तो बन नहीं पायेगी बोलने में कौन स पैसा लगता है / लेकिन आज की जनता थोड़ी होशियार हो गई है तभी तो पिछली बार मायावती को को पूर्ण बहुमत से ला दिया और किये गए वायदे न पूरा करने पर करते भी कहा से राज्य के पास इतना पैसा भी नहीं है की वो नेताओ के मुह से निकली हर बात को पूरा कर सके ये अल्लादीन का चिराग तो है नहीं घोटाले भी करो और वायदे भी बस घिसो और मांगते जाओ / और इस बार जनता ने मौका दिया है समाजवादी पार्टी को अब ये कैसे अपने किये गए वायदे पुरे करंगे ये सबसे ज्यादा चिंता का विषय बना हुआ है समाजवादी पार्टी के लिए मौजूदा समय में /
हर बार जनता बेब्कुफ़ बनती है उन बडबोले नेताओ की जुबान पर और चंद नेता हजारो की भीड़ लगा कर वायदे कर के चले जाते है /और जनता को दिखाय गए ड्रीम प्रोजेक्ट्स हमेशा ड्रीम में ही बने रहते है / और जनता चाय की दुकान नुक्कड़ और चौराहों आफिसो में अपने आप को और उस सरकारों को कोसते रह जाते है /
एक बात और है की जनता को इतने सारे वायदे करने वाले नेताओ को और कुछ नहीं दिखाई पड़ता है क्या , क्या सिर्फ जनता को वायदे करो बस और कुछ नहीं ,आज किसी भी राजनितिक पार्टी के घोषणा पत्र में पतित पावनी गंगा और गो हत्या के लिए एक लाइन भी नहीं होती है क्योँ जानते है कितने लोग पतित पावनी गंगा को निर्मल करने के लिए संघर्ष करते करते म्रत्यु को प्राप्त हो गए और इस देश की जनता को उन लोगो के नाम तक याद नहीं होने की वो कौन थे जिन्होने गंगा को निर्मल करने के लिए संघर्ष किया था /
आज नेताओ को अपना अस्तित्व खो रही उस गंगा मैया उनको चुनाव जिताने का फार्मूला नहीं दिखती है / इसलिए ही उनके घोषणा पत्र में शामिल नहीं करते है / क्या अभी तक किसी भी चुनावी मंच पर किसी भी पार्टी ने गंगा को स्वच्छ करने के लिए एक लाइन भी बोली होगी शायद नहीं क्या उनको अपने घोषणा पत्र में गंगा को गन्दा करने वालो के लिए कठोर दंण्ड का प्रावधान और कानून बनाने की जरूत जैसी बाते नहीं लिखनी चहिये ,गंगा को निर्मल बनाये जाने की लिए सरकार में एक अलग विभाग एक अलग कोष नहीं बनाना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं होता है क्योँ, क्योंकि इससे न ही राजनितिक पार्टियों को फायदा होगा और नहीं जनता को /
क्या सोचते है नेता और क्या सोचती है जनता की अपने क्षेत्र का विकास न होने पर मतदान का बहिस्कार कर देंगे ,लेकिन गंगा को गन्दा करने वालो के लिए क्या और क्योँ ?
क्या ये समझा जाय की नेता नहीं जनता मौका परस्त है / सैकड़ो बेजुबान गाय रोज़ काट दी जाती और न जाने कितनी सड़क पर आवारा घुमती हुए दुर्घटना के कारण म़र जाती है क्या गाय की रक्षा के लिए जनता नेताओ से मांग नहीं कर सकती है ?क्या उन लोगो को दण्डित नहीं किया जाना चाहिए जो यु ही गाय को खुला छोड़ देते है और सरकार को कुछ ऐसे जगह बनानी चहिये जहा ऐसे गायो को पला जाय जो उनके लिए बेकार हो जाती है जो उन्हे पालते थे और आज चंद रुपयों में कटने के लिए बेच दिया /
बलत्कार की शिकार लडकियों को सरकारी नौकरी का वायदा तो कर सकते है लेकिन गाय की हत्या और गंगा को गन्दा करने वालो के लिए कोई कठोर कानून नहीं ऐसा देश है मेरा / जहा माँ की जरूरत एक समय के बाद ख़त्म हो जाती है और उनके पापो को धो देने वाली उनकी मान्यतो को पूरा करने वाली माँ को ऐसे उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है / माँ की ममता है की फिर भी वो अपने बेटो बे सहारा नहीं छोड़ती है बिना लालच के उनको पापो को धो रही है चाहे कितनी भी गन्दी हो जाय लेकिन अपनी बची हुई तनिक भी शुद्धता से वो उनके पाप धो रही है जो वास्तव में पापी है /
मुद्दा ये भी है की नेता अपने किये गए वायदों को न पूरा करे तो दगाबाज लेकिन क्या वास्तव में जनता नेताओ से कुछ मांगती है नहीं कुछ भी ऐसा नहीं मांगती जो जायज हो ,जब नाजायज चीज़ पूरी ही नहीं हो सकती तो दोष किसका हुआ अगर जनता सही मायनो में सही मुद्दे राजनीतक पार्टियों के सामने रखे तो उनके ऊपर भी दबाव होगा उन्हे पूरा करने का / नहीं तो ऐसे वो वायदे करते रहंगे और आप कोसते रहंगे /
कुल मिलाकर मुद्दा ये है की पार्टिया जनता से वायदे करती है और फिर दगा बाज़ी भी कर जाती है किये गए वायदे अभी तक कितनी बार पूरे हुए है जनता खुद इसका जवाब जानती है /और गर पुरे होते भी है तो ठीक उसी तरह ही जैसे किसी मल्टीनेशनल कंपनी जिसको अंत के माह में अपना टार्गेट पूरा करने के लिए कई तरह की आफर देने पड़ते है और प्रचार प्रसार करना पड़ता है /ठीक इसी प्रकार राजनितिक पार्टिया अपने कार्यकाल के अंतिम समय में उन योजनाओ को लागू कर देते है जो उन्होने चुनाव से पहले किये थे / एक बात ये भी है की पार्टियों को अपनी पहुच भी मालूम होती है की वो कितनी सीट निकाल सकती है और सरकार बना सकती है और इसी फेर में वो वायदे कर देती है की हमारी सरकार तो बन नहीं पायेगी बोलने में कौन स पैसा लगता है / लेकिन आज की जनता थोड़ी होशियार हो गई है तभी तो पिछली बार मायावती को को पूर्ण बहुमत से ला दिया और किये गए वायदे न पूरा करने पर करते भी कहा से राज्य के पास इतना पैसा भी नहीं है की वो नेताओ के मुह से निकली हर बात को पूरा कर सके ये अल्लादीन का चिराग तो है नहीं घोटाले भी करो और वायदे भी बस घिसो और मांगते जाओ / और इस बार जनता ने मौका दिया है समाजवादी पार्टी को अब ये कैसे अपने किये गए वायदे पुरे करंगे ये सबसे ज्यादा चिंता का विषय बना हुआ है समाजवादी पार्टी के लिए मौजूदा समय में /
हर बार जनता बेब्कुफ़ बनती है उन बडबोले नेताओ की जुबान पर और चंद नेता हजारो की भीड़ लगा कर वायदे कर के चले जाते है /और जनता को दिखाय गए ड्रीम प्रोजेक्ट्स हमेशा ड्रीम में ही बने रहते है / और जनता चाय की दुकान नुक्कड़ और चौराहों आफिसो में अपने आप को और उस सरकारों को कोसते रह जाते है /
एक बात और है की जनता को इतने सारे वायदे करने वाले नेताओ को और कुछ नहीं दिखाई पड़ता है क्या , क्या सिर्फ जनता को वायदे करो बस और कुछ नहीं ,आज किसी भी राजनितिक पार्टी के घोषणा पत्र में पतित पावनी गंगा और गो हत्या के लिए एक लाइन भी नहीं होती है क्योँ जानते है कितने लोग पतित पावनी गंगा को निर्मल करने के लिए संघर्ष करते करते म्रत्यु को प्राप्त हो गए और इस देश की जनता को उन लोगो के नाम तक याद नहीं होने की वो कौन थे जिन्होने गंगा को निर्मल करने के लिए संघर्ष किया था /
आज नेताओ को अपना अस्तित्व खो रही उस गंगा मैया उनको चुनाव जिताने का फार्मूला नहीं दिखती है / इसलिए ही उनके घोषणा पत्र में शामिल नहीं करते है / क्या अभी तक किसी भी चुनावी मंच पर किसी भी पार्टी ने गंगा को स्वच्छ करने के लिए एक लाइन भी बोली होगी शायद नहीं क्या उनको अपने घोषणा पत्र में गंगा को गन्दा करने वालो के लिए कठोर दंण्ड का प्रावधान और कानून बनाने की जरूत जैसी बाते नहीं लिखनी चहिये ,गंगा को निर्मल बनाये जाने की लिए सरकार में एक अलग विभाग एक अलग कोष नहीं बनाना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं होता है क्योँ, क्योंकि इससे न ही राजनितिक पार्टियों को फायदा होगा और नहीं जनता को /
क्या सोचते है नेता और क्या सोचती है जनता की अपने क्षेत्र का विकास न होने पर मतदान का बहिस्कार कर देंगे ,लेकिन गंगा को गन्दा करने वालो के लिए क्या और क्योँ ?
क्या ये समझा जाय की नेता नहीं जनता मौका परस्त है / सैकड़ो बेजुबान गाय रोज़ काट दी जाती और न जाने कितनी सड़क पर आवारा घुमती हुए दुर्घटना के कारण म़र जाती है क्या गाय की रक्षा के लिए जनता नेताओ से मांग नहीं कर सकती है ?क्या उन लोगो को दण्डित नहीं किया जाना चाहिए जो यु ही गाय को खुला छोड़ देते है और सरकार को कुछ ऐसे जगह बनानी चहिये जहा ऐसे गायो को पला जाय जो उनके लिए बेकार हो जाती है जो उन्हे पालते थे और आज चंद रुपयों में कटने के लिए बेच दिया /
बलत्कार की शिकार लडकियों को सरकारी नौकरी का वायदा तो कर सकते है लेकिन गाय की हत्या और गंगा को गन्दा करने वालो के लिए कोई कठोर कानून नहीं ऐसा देश है मेरा / जहा माँ की जरूरत एक समय के बाद ख़त्म हो जाती है और उनके पापो को धो देने वाली उनकी मान्यतो को पूरा करने वाली माँ को ऐसे उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है / माँ की ममता है की फिर भी वो अपने बेटो बे सहारा नहीं छोड़ती है बिना लालच के उनको पापो को धो रही है चाहे कितनी भी गन्दी हो जाय लेकिन अपनी बची हुई तनिक भी शुद्धता से वो उनके पाप धो रही है जो वास्तव में पापी है /
मुद्दा ये भी है की नेता अपने किये गए वायदों को न पूरा करे तो दगाबाज लेकिन क्या वास्तव में जनता नेताओ से कुछ मांगती है नहीं कुछ भी ऐसा नहीं मांगती जो जायज हो ,जब नाजायज चीज़ पूरी ही नहीं हो सकती तो दोष किसका हुआ अगर जनता सही मायनो में सही मुद्दे राजनीतक पार्टियों के सामने रखे तो उनके ऊपर भी दबाव होगा उन्हे पूरा करने का / नहीं तो ऐसे वो वायदे करते रहंगे और आप कोसते रहंगे /