tag:blogger.com,1999:blog-654709585592397431.post8800413186146463574..comments2023-10-17T08:31:03.321-07:00Comments on कानपुर पत्रिका: बे -औलादKanpurpatrikahttp://www.blogger.com/profile/09449636706004146539noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-654709585592397431.post-3063629235438467962011-07-29T01:19:20.238-07:002011-07-29T01:19:20.238-07:00वाकई बहुत बारीकी से उकेरा है। अच्छे लेखन के लिये ब...वाकई बहुत बारीकी से उकेरा है। अच्छे लेखन के लिये बहुत-बहुत बधाई आपको।Nitin Sabrangihttps://www.blogger.com/profile/00511279827367795510noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-654709585592397431.post-70515521976421678072011-07-28T03:55:16.766-07:002011-07-28T03:55:16.766-07:00rekha ji aur guru ji aap dono mere se umra me kafi...rekha ji aur guru ji aap dono mere se umra me kafi badey aur anubhava waley hai ..apkey vicharo ka main samman karta hu aur sath hi unsey shamat bhi hu .... bas mera lekh likheny ka vichar tab aya jab main khud ek pita bana aur kya kya kasht uthaney padtey hai maa bap ko usko samjha .. tab main is nishkarsh par pahucha ki kya badey honey key bad bacchey esa kyon kartey hai .. rekah ji jaisa paney kaha ki apkey yaha bhi kuch esa hi hua .. tab dukh hota hai .. insan sab bhul jay bas pana bachpana na bhuley bas vo hamesha insan bana rahega ..<br /> dhanyawad aap sabhi ka blog par aney key liye ..<br />raju ranjan yadavji apka bhi ..Kanpurpatrikahttps://www.blogger.com/profile/09449636706004146539noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-654709585592397431.post-69108600106068481972011-07-26T00:38:12.706-07:002011-07-26T00:38:12.706-07:00Nice blog
barakhalNice blog <br /><a href="http://barakhal.blogspot.com" rel="nofollow">barakhal</a>Raju Ranjan Yadavhttps://www.blogger.com/profile/11651743767077073160noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-654709585592397431.post-2717199414569267652011-07-25T22:11:03.326-07:002011-07-25T22:11:03.326-07:00इस मामले में केवल प्रकृति को सोचने का अधिकार है,वह...इस मामले में केवल प्रकृति को सोचने का अधिकार है,वह जो करना चाहती है वह किसी को नही पता है जो हमे पता है वह केवल आज के और बीते हुये कल की जानकारी से ही आकलन किया जा सकता है। मानव शक्ति धन की शक्ति प्रदर्शन करने की शक्ति मानसिक शक्ति बुद्धि की शक्ति रोजाना के काम करने की शक्ति महसूस करने की शक्ति जोखिम लेने की शक्ति सामाजिक मर्यादाओं पर चलने की शक्ति केवल अपनी ही प्रभुता दिखाने की शक्ति केवल और केवल लाभ में रहने की शक्ति तथा दूसरों के भले के लिये अपनी इन शक्तियों का ह्रास करना ही औलाद का सुख माना जाता है,इसके अलावा केवल जनगणना के आंकडे बढाने से अच्छा है बेऔलाद ही रहना.रामेन्द्र सिंह भदौरियाhttps://www.blogger.com/profile/16542171789034654192noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-654709585592397431.post-78948644481212233222011-07-25T04:41:16.253-07:002011-07-25T04:41:16.253-07:00आशीष तुमने बहुत अच्छा लिखा और यथार्थ भी लिखा लेकिन...आशीष तुमने बहुत अच्छा लिखा और यथार्थ भी लिखा लेकिन इसके विषय में यह कहना है की अगर हम आने वाले दुखों की सोच कर कर्म करना ही बंद कर दें तो इस सृष्टि का क्या होगा? सब बे-औलाद होना इस डर से स्वीकार कर लें कल तो औलाद को दगा देना ही है तो फिर इति हो जाएगी इस सृष्टि की. सारी दुनियाँ ऐसी ही है ये तो नहीं कहा जा सकता है. प्रकृति एक अपना संतुलन बना कर रखती थी. सारे बुरे नहीं होते - नितांत व्यक्तिगत बात कहती हूँ. मेरी सासु माँ दो बेटों की माँ थीं. जो उनको बहुत बड़ी उम्र में पैदा हुए. दोनों के बीच ७ साल का अंतर. स्वाभाविक है की बड़ा आँख का तारा होगा. माँ की इच्छा का सम्मान करते हुए छोटे ने कभी साथ न छोड़ने की सोची और उनके जीते जी बहुत दुःख उठाये लेकिन माँ को दुःख न होने दिया. उसी घर में एक साथ रहते हुए बड़े बेटे ने माँ से सरोकार न रखा. छोटे ने अपनी माँ के एक एक्सीडेंट हो जाने पर अपंगता आने के कारण ३९ साल तक निःस्वार्थ सेवा की. कभी कुछ नहीं चाहा - खुद ही करता रहा. जब मैं उसके साथ जुड़ी तो मैं भी उसी रास्ते चल दी.<br /> एक घर में दो बेटे दो स्वभाव के. एक बिस्तर पर पड़ी माँ के आवाज देने पर भी कहता की - 'इसको मौत भी नहीं आती, कब मारेगी ये.' वह कानों से बहरी और आँखों से न देख पाने के कारण कुछ कह न पाती लेकिन तेवर से सब कुछ समझ लेती. सौ साल की हो कर स्वर्ग सिधारी. उसने एक औलाद से औलाद वाली होने का सुख पाया तो एक औलाद से बेऔलाद होने की कामना की. अब क्या कहोगे? ये प्रकृति संतुलन बनाये रखती है. सब एक से नहीं होते. अभी माँ की गरिमा शेष है और जब तक ये सृष्टि रहेगी शेष ही रहेगी. माँ बनेगी और बनती रहेगी.रेखा श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com